________________
झाला
भिन्न-भिन्न प्रकार के कालिमालिप्त और चन्दनलिप्त देखकर लोगों ने कहा - राजा ने इस प्रकार अपने दोनों हाथों को क्यों पोत दिया?
मन्त्रियों ने कहा - राजा कि अभिलाषा थी कि काली स्याही से पुता हुआ हाथ देखकर लोग पाप कार्यों से बचें और चन्दनलिप्त हाथ देखकर सद्कार्यों में प्रवृत्त हों।
राजा की दूरदर्शिता देखकर लोग बुरे कामों से बचकर अच्छे काम करने लगे। ३६. हाथ का दिया हुआ ही काम आता है.
झाल्लो वाटिका के महाराज छल ने अपने जीवन में कभी देना सीखा ही नहीं था और न कभी अपने हाथ से दान ही दिया था। अन्तिम समय में दान देने की उसकी इच्छा हुई। उसने अपने पुत्रों से कहा - मेरे पास गायों का झुण्ड, घोड़ों की प्रचुरता और रथों का संग्रह है। मैं इन सबका दान करना चाहता हूँ।
यह सुनकर राजपुत्रों ने मन्त्री आदि के साथ विचार-विमर्श करते हुए कहा - 'बुढ़ापे में पिताजी की मति चली गई है, इस प्रकार से वे सब कुछ लुटा देंगे, अत: इसका प्रतिकार करना आवश्यक है।' परामर्श के पश्चात् यह निर्णय लिया गया कि जब भी पिताजी इस प्रसंग को छेड़ें तो उस समय उनके समक्ष यही कहा जाए - 'पिताश्री ! अभी आपकी बीमारी के कारण हम सब सेवा में व्यस्त हो रहे हैं, अतः आप जो कुछ भी दान देना चाहते हैं, उसकी पूर्ति हम आपके पश्चात् कर देंगे।' इस प्रकार कह-कह कर पिता को झाँसा देते रहे। राजा की मृत्यु हो गई। राजपुत्रों ने एक दाना भी दान में नहीं दिया। इसीलिए यह कहा जाता है - 'अपने हाथों से जो दिया जाता है, वही अपना होता है पीछे की सन्तान कुछ नहीं करती है बल्कि मरण के पश्चात् पुत्रों में संघर्ष और विघटन हो जाता है। फलतः देने की कल्पना ही नहीं उठती।'
शुभशीलशतक
45
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org