SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ इधर दोनों राजकुमार उस रसकूपिका को अपने हस्तगत करने का प्रयत्न करने लगे। उनके हाथ वह रसकूपिका नहीं आई क्योंकि वह देवाधिष्टित थी । उन दोनों को हत्यारा जानकार देवताओं ने उन दोनों को खत्म कर दिया । वे दोनों मरकर नरक में गये और पापजनित अशुभ कर्मों का फल भोगने लगे । रसस्तम्भन के कारण वह त्रम्बावती स्तम्भन के नाम से प्रसिद्ध हो गई। भगवान् पार्श्वनाथ भी वही स्तम्भित हो गये । कालान्तर में सेढी नदी के किनारे स्तम्भन पार्श्वनाथ की मूर्ति प्रकट होने पर वह स्थान स्तम्भनपुर के नाम से प्रसिद्ध हुआ, जो कि आज भी उसी नाम से पूजा जाता है। २६. खल भक्षण की इच्छाः धन नाश का संकेत. चन्द्रपुर नगर में धन सेठ रहता था । वह ४ करोड़ सोनैयों का मालिक था । वह सर्वदा श्रेष्ठ एवं पवित्र वस्त्र पहन कर देव गुरु की भक्ति करता था, श्रीसंघ की संघपूजा कर मधुर भोजन करवाता था तथा सज्जन पुरुषों का सदा सत्कार-सम्मान करता था । 1 एक समय राजमार्ग पर राजा की सवारी चल रही थी । उसने एक महल पर ४ ध्वजा-पताकाएँ देखकर मंत्री से पूछा इस मकान पर १-१ नहीं ४-४ ध्वजाएँ क्यों लगी हैं? मंत्री ने उत्तर दिया- राजन् ! ४ करोड़ सोनैयों के मालिक का यह घर है, इसलिए ४-४ ध्वजाएँ लगी हैं । राजा ने सुना, उसके मन में लोभ समाया और सोचने लगा - 'वापस लौटते हुए इस भण्डार को हस्तगत कर लेंगे। अभी तो जिस गाँव में जा रहे है, वहाँ चलें ।' राजा आगे चला गया। इधर सेठ को अकस्मात् ही खल खाने की इच्छा हुई। सेठ ने विचार किया- 'मेरा खल खाने की अभिलाषा यह स्पष्ट संकेत देती है कि यह सारा माल राजा हड़प लेगा और मैं खल भक्षण के योग्य कंगाल हो जाऊँगा अथवा 30 Jain Education International शुभशीलशतक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy