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किया और रस-सिद्धि के लिए सातवाहन राजा की लड़की महासती चन्द्रलेखा को वहाँ लाया। नागार्जुन ने उसे अपनी बहन बनाया। वह चन्द्रलेखा रससिद्धि के लिए रसों का मर्दन करने लगी। एक समय उसने इसका कारण पूछा तब नागार्जुन ने बतलाया - 'यह प्रयत्न मैं स्वर्ण सिद्धि के लिए कर रहा हूँ।' औरत के पेट में बात टिकती नहीं, इसी कहावत को उसने फलित भी किया।
एक समय उसने वहाँ आये हुए बलवान दो राजपुत्रों के सम्मुख यह रहस्य खोल दिया। वे दोनों भी राजसुख और वैभव का त्याग कर स्वर्णसिद्धि के लोभी होने के कारण छल पूर्वक नागार्जुन की सेवा करने लगे। स्वर्णसिद्धि निर्माण का इच्छुक नार्गाजुन जहाँ भोजन करता था, वहाँ उस पाकशाला में जाकर बनाने वाली को गुप्त रूप से पूछा – 'यहाँ भोजन करने के लिए कौन आता है?' उसने कहा – 'नार्गाजुन यहाँ भोजन करने के लिए पधारते हैं।'
___ तब उन दोनों ने उस भोजन बनाने वाली को मनपसन्द भेंट देकर प्रसन्न किया और कहा - 'तुम उनके लिए नमक युक्त भोजन बनाओ और जब भोजन करते हुए नागार्जुन के मुख से यह निकले कि आज भोजन खारा क्यों है? तब तुम हमें बता देना।' क्षार युक्त भोजन करते हुए छ: महीने बीत गये। एक दिन उनके मुख से निकला – 'खाने में नमक बहुत ज्यादा है।' उसी दिन रसोईदार महिला ने तत्काल ही उन दोनों राजकुमारों को यह बात बतला दी। उन दोनों ने जान लिया कि अब हमें शीघ्र ही रस मिल जायेगा। उन्होंने नागपति वासुकी से जानकारी ले ली कि 'कुशाग्र से नागार्जुन की मृत्यु होगी।' इधर शुद्ध रस की सिद्धि होने पर नागार्जुन दो कुतप (तेल रखने की चमड़े की कुप्पी) भरकर ढुक पर्वत की गुफा में प्रच्छन्न रूप से रख दिये। वहाँ से लौटते हुए नागार्जुन का कुशाग्र से क्षत्रियों ने वध कर दिया। नागार्जुन स्वर्गवासी हो गया। कहा है
अजाते चित्रलिखिते, मृते च मधुसूदनः। क्षत्रिये त्रिषु विश्वास-श्चतुर्थो नोपलभ्यते॥
अर्थात् - अज्ञात चित्रशाला, मरते हुए मधुसूदन का और क्षत्रिय का इन तीन का ही विश्वास करना चाहिए, चौथा विश्वास का स्थान नहीं है।
शुभशीलशतक
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