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इस माल का हरण चोर करेंगे अथवा जल कर खत्म हो जायेगा।' कहा भी
दामादाः स्पृहयन्ति तस्करगणा मुष्णन्ति भूमीभुजो, गृह्णन्तिच्छलमाकलय्य हुतभुग्भस्मीकरोति क्षणात्। अम्भः प्लावयति क्षितौ विनिहितं यक्षा हरन्ते हठात्, दुर्वृत्तास्तनया नयन्ति निधनं धिग्बह्वधीनं धनम्॥
अर्थात् – इस चञ्चल लक्ष्मी को प्राप्त करने के अनेक अभिलाषी हैं। जैसे - जामाताओं की दृष्टि सदा इस पर गड़ी रहती है, तस्करगण हरण करने की इच्छा करते हैं, राजागण छलपूर्वक ग्रहण करने की इच्छा करते हैं, अग्नि अपनी लपटों में लपेटने की कामना करती है, समुद्र अपने तल में स्थापन करने की इच्छा रखता है, पृथ्वी में खोद कर रखा जाता है जिसका यक्षगण हरण कर लेते हैं और दुराचारी संतानें इसको उड़ा कर कंगाल हो जाते हैं। अरे! इस धन के तो अनेक मालिक हैं, अतः धिक्कार हो।
इस सूक्ति पर विचार करते हुए धन श्रेष्ठ ने अपनी सारी सम्पत्ति सातों क्षेत्रों में और दीन-दुःखियों में बाँट दी।
___ इधर लौटते हुए राजा ने जब उस हवेली को ध्वजापताकाओं से रहित देखा तो पूछ बैठा - अरे! जिस समय मैं गया था, उस समय इस हवेली पर ४-४ ध्वजापताका लग रही थीं और लौटते हुए देखता हूँ कि एक भी ध्वजापताका नहीं, क्या कारण है?
जब उसे जानकारी मिली कि सेठ ने अपनी अढलक सम्पत्ति का दान कर दिया है, तो राजा विस्मय-विमूढ हो गया।
राजा ने सेठ को बुला कर पूछा - हे सेठ! तुमने ऐसा क्यों किया?
तब सेठ ने उत्तर दिया- महाराज ! मुझे क्षमा करें । आज जब आपने इधर से जाते हुए मेरी हवेली पर दृष्टिपात किया था तब उसी समय मेरी अभिलाषा खलभक्षण की हुई। इस इच्छा पर दूरदर्शिता से विचार करते हुए मैंने यह संकेत माना कि मेरी यह सारी सम्पत्ति जाने वाली है। जो जाने वाली
शुभशीलशतक
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