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________________ __ अर्थात् - धर्म के प्रभाव से पूर्व में भरतचक्रवर्ती आदि हुए है और श्रेणिक तथा सम्प्रति राजाओं ने इस तीर्थ की भावपूर्वक पूजन वन्दना की है। शालिभद्र ने भी असीम धन प्राप्ति का बंधन भी इसके प्रभाव से किया था, अतः बुद्धिमानजनों को निर्मल धर्म कार्य में सदा प्रयत्न करना चाहिए। अर्थात् - जिस प्रकार वृक्ष से पुष्प और फल होते हैं, राजा की कृपा से धन, पद और सौभाग्य बढ़ता है, सुपुत्र से कुल की वृद्धि और यश फैलता है, उसी प्रकार जिनेश्वर भगवान् के प्रताप से भोग और मुक्ति भी प्राप्त होती है। २३. अयोग्य व्यक्ति की पदोन्नति खतरनाक होती है. एक नगर में भीमराजा राज्य करता था। अपनी चापलूसी के कारण नापित/नाई उसका मुख्यमंत्री बन गया। राजा मंत्रियों की कोई भी बात नहीं सुनता था और उनका परामर्श भी नहीं मानता था। एक समय वैरी राजाओं ने उसके राज्य को चारों तरफ से घेर लिया। उस समय अनेक लोग कहने लगे- 'मन्त्रियों के बिना राज्य की रक्षा नहीं हो सकती।' यह समाचार चमचों के द्वारा राजा के पास भी पहुँचा। एक मित्र ने राजा से कहा - 'नाई की परीक्षा करो कि वैरियों से घेरे जाने पर राज्य की रक्षा कैसे की जाती है?' राजा ने भी मान लिया और एक रोज राजा ने नाई से पूछा – 'हे नाई! मान लो कभी शत्र राजा की सेनाएँ इस नगर को घेर ले तो उस पर विजय कैसे प्राप्त करोगे? कौन सी बुद्धि का प्रयोग करोगे?' नाई बोला – 'राजन् ! मैं हाथ में दर्पण/शीशा लेकर निकल जाऊँगा और उसके माध्यम से ही मैं युद्ध करूँगा तथा उस शीशे को देखकर वे सब शत्रु सैनिक भाग जायेंगे।' ___ उस नाई के मुख से यह बात सुनकर राजा की बुद्धि ठिकाने आई, वह समझ गया कि यह प्रधान बनने के योग्य नहीं है। मैंने पहले जिन मन्त्रियों को अपमानित कर निकाल दिया था, वह मैंने अच्छा नहीं किया था। यदि मन्त्रियों को मैं सम्मान देकर वापस नहीं बुलाऊँगा तो यह राज्य भी मेरे हाथ से चला जायेगा। ऐसा सोचकर राजा ने पूर्व मन्त्रियों को बुलाकर सम्मानित किया और पुनः मन्त्री पद प्रदान किया। मन्त्री ने अपनी राजनैतिक सूझबूझ से उन शत्रु राजाओं को भी वश में कर लिया। शुभशीलशतक 23 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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