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________________ कामचोर का सब जगह अनादर होता है. श्रीपुर नगर में धन सेठ रहता था । उसका पुत्र कुन्तल था, वह विवाह योग्य हो गया था । यह समाचार चन्द्रपुर के मदन सेठ ने सुना और उसके साथ अपनी पुत्री का सम्बन्ध करने की दृष्टि से वहाँ आया । वहाँ उसने देखा कि वह श्रेष्ठ पुत्र कुन्तल सूर्य की ओर मुख कर, पैर ऊँचा कर, खड़ेखड़े कलसी (पात्र) में पेशाब कर रहा था । मदन सेठ विचार में पड़ गया और श्रीपुर में रहने वाले अपने मित्र के पास कुन्तल की जानकारी के लिए गया। उसने मित्र से पूछा - 'इस धन सेठ के कितने पुत्र हैं ? ' पुत्र उस मित्र ने भी व्यंग्य से उत्तर देते हुए कहा - इसके नौ कुछ क्षण बाद पुन: सेठ ने इसके कितने पुत्र हैं? मित्र ने उत्तर दिया – पाँच पुत्र हैं पूछा - I कुछ देर के बाद उस मित्र से पुन: पूछा उस मित्र ने फिर उत्तर दिया - तीन पुत्र २४. हैं Jain Education International - हैं I पुनः यही प्रश्न दोहराने पर उसने कहा - पाँच पुत्र हैं। पुनः पुनः पूछने पर उसने तीन पुत्र और एक पुत्र कहा । 1 इसके कितने पुत्र हैं? यह सुनकर मदन सेठ ने कहा - मित्र तुम मुझे अलग-अलग बात कहकर भम्र में क्यों डालते हो? For Personal & Private Use Only मित्र ने कहा मैंने तुम्हे जो कुछ भी कहा है, वह सत्य है । यह श्रेष्ठि पुत्र कुन्तल ऊपर बैठकर सूर्य की तरफ मुख कर कलसी में पेशाब कर रहा था, तब मैंने सेठ के तीन पुत्र हैं, कहा । यह कुन्तल पाँच मनुष्यों का भोजन एक समय में ही खा लेता है, अतः मैंने सेठ के पाँच पुत्र बतलाए । यह कुन्तल सोते समय अपने शरीर को नौ प्रकार से सर्प के समान कुण्डली करके सोता है, अतः मैंने इस सेठ के नौ पुत्र बतलाए । इस प्रकार का वर तुम्हे ढूँढने पर भी प्राप्त नहीं होगा। यह एक मात्र है, इसलिए मैंने एक बतलाया। हे मित्र सेठ! इस प्रकार का निखट्टू जामाता आपको अच्छा लगता 24 शुभशीलशतक www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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