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________________ कथमुत्पद्य कथं वा अर्थात् - धर्म का आविर्भाव कैसे होता है? उसका वर्द्धन किस प्रकार होता है? धर्म की स्थापना कैसे की जाती है ? और धर्म का विनाश कैसे होता है ? धर्मः स्थाप्यते स्वाख्यातः यं कथं धर्मो धर्मः, कथं धर्मो धर्मसिद्धौ दुग्धोपलब्ध सत्येनोत्पद्यते क्षमया स्थाप्यते धर्मः, अर्थात् - सत्य से धर्म का आविर्भाव होता है, दया एवं दान से उसका वर्द्धन होता है, क्षमा से धर्म की स्थापना होती है और क्रोध एवं लोभ से उसका विनाश होता है । धर्मोऽथाधर्मः प्राणिनां वधः । अहिंसालक्षणो तस्माद् धर्मार्थिना नित्यं कर्त्तव्या प्राणिनां दया ॥ अर्थात् - धर्म का लक्षण अहिंसा है और प्राणियों का वध करना अधर्म है, अत: धर्मार्थियों को सर्वदा प्राणियों पर दया भाव रखना चाहिए । धर्मो, Jain Education International " धर्मोऽयं, खलु समालम्ब्य[ लम्ब ]मानो हि, न शौचं, अर्थात् - जिनेश्वर भगवान् द्वारा प्ररूपित धर्म का आलंबन लेकर आचरण करने से प्राणि संसारसागर में गोते नहीं लगाता है। संयमः सूनृतं क्षान्तिमार्दवमृजुता, अर्थात् - धर्म १० प्रकार का कहा गया है - १. संयम, २. सत्य, ३. पवित्रता, ४. ब्रह्मचर्य, ५. अपरिग्रह, ६. तप, ७. क्षमा, ८. मृदुता, ९. ऋजुता और १०. मुक्ति । मुक्तिश्च दयादानेन वर्धते । क्रोधलोभाद्विनश्यति ॥ ध्रुवं सुलभा, विवर्धते । विनश्यति ॥ भगवद्भिर्जिनोत्तमैः । मज्जेद्भवसागरे ॥ ब्रह्माकिञ्चनता शुभशीलशतक दशधा स सिद्धि - द्युम्नप्रद्युम्रयोरपि । संपत्तिर्दधिसर्पिषोः ॥ For Personal & Private Use Only तपः । तु ॥ 21 www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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