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________________ सेवकों ने लोहघन से प्रतिमा को तोड़ने का प्रयत्न किया। लोहघन के आघात से प्रतिमा के भीतर से अग्नि ज्वालाएँ निकलने लगीं । प्रतिमा का कुछ भी बिगाड़ नहीं हुआ। यह देखकर सुरत्राण ने भगवन् मूर्ति से अपने अपराध की क्षमा चाही । विधि पूर्वक वन्दन किया और स्वर्ण दीनारों से मूर्ति को वधाया । ११. अधिक उपयोगी बड़ा फूल कौन सा है ? एक समय सुरत्राण ने जिनप्रभसूरि से पूछा- 'भूमि में सबसे विस्तार वाला फूल कौन सा है ? ' जिनप्रभसूरि ने उत्तर दिया- 'वउनि अर्थात् कपास ।' कपास के फूल ही सब लोगों के शरीर को आच्छादित करने का काम करते हैं, अतः वही सबसे बड़ा और उपयोगी है। १२. सत्यवादी झूठ नहीं बोलते. एक दिन सुलतान के सम्मुख किसी ने ईष्यावश कहा 'सुलतान ! जगत्सिंह सज्जन पुरुष हैं, वह कभी झूठ नहीं बोलता ।' सुलतान ने इस बात का परीक्षण करने के लिए जगत्सिंह से पूछा ' हे जगत्सिंह! तुम्हारे पास कुल सम्पत्ति कितनी है ? ' जगत्सिंह ने कहा 'इसका उत्तर मैं कल दूँगा । ' वहाँ से घर जाकर अपनी सारी समृद्धि का आकलन किया और दूसरे दिन सुरत्राण की सभा में जाकर सुलतान से जगत्सिंह ने कहा 'सुरत्राण ! मेरे घर में ८४ लाख स्वर्ण टंकों की सम्पत्ति है ।' घर की सम्पत्ति का भेद कोई भी नहीं बतलाता । जगत्सिंह की सच्चाई देखकर सुलतान ने १६ लाख स्वर्ण टंक अपने कोषागार/राजभण्डार से प्रदान किये और जगत्सिंह को कोटिध्वज सम्मान से अलंकृत किया । Jain Education International शुभशीलशतक For Personal & Private Use Only 9 www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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