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________________ १३. जगत में सबसे बड़ा रत्न कौन सा है? एक दिन राज सभा में बैठे हुए सुलतान ने अपने हाथ में एक अमूल्य रत्न लेकर कहा – 'हे जगत्सिंह ! जो यह रत्न मेरे हाथ में है, उससे अधिक मूल्यवाला श्रेष्ठ रत्न कहीं विद्यमान है?' जगत्सिंह ने उत्तर दिया - 'हे सुलतान! इस रत्न से भी अधिक अमूल्य रत्न जगत में विद्यमान है और वह असाधारण रत्न आप स्वयं ही हैं।' जगत्सिंह की हाजिर-जवाबी देखकर सुलतान अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसको बहुत धन दे कर सम्मानित किया। १४. न्यासित धन लौटाना. खुरसाण देश के रहने वाले वणिक ने एक समय ओसवाल जाति के मुख्य शिरोमणि सज्जन प्रकृति वाले जगत्सिंह का घर अत्यन्त विश्वसनीय और सुरक्षित समझ कर ५ लाख टंक (उस समय की मुद्रा) वहाँ रखकर चला गया। ७ वर्ष व्यतीत हो गये। इसी बीच श्रेष्ठि जगतसिंह का स्वर्गवास हो गया। उसने सुना और मन में विचार किया, 'मेरा यह न्यासित धन अकाल में ही समाप्त हो गया।' पुनः उसे विचार आया, जगत्सिंह का पुत्र मुहणसिंह भी जगत्सिंह के समान ही विश्वसनीय है, क्यों न उसका परीक्षण करूँ? सम्भव है वह गया हुआ धन मुझे वापस मिल जाए।' यह सोचकर कुछ समय के पश्चात् वह प्रवास करता हुआ मुहणसिंह के निवास पर आया। उससे मिला और उससे कहा - 'हे मुहणसिंह ! तुम्हें ज्ञात ही होगा कि तुम्हारे पिता मेरे घनिष्ठ मित्र थे। मैं तुम्हारे पिता के पास में ५ लाख टंक छोड़कर चला गया था, वर्षों बाद लौटा हूँ। अब मुझे मेरा धन वापस कर दो।' मुहणसिंह ने कहा - 'आपके झूठ बोलने का कोई कारण नहीं है। आपकी बात मैं स्वीकार करता हूँ किन्तु यह लेन-देन का मामला है। व्यावसायिक दृष्टि से यदि उस समय मेरे पिताजी ने कोई पर्चा लिख कर दिया हो तो वह मुझे दिखाईये। वह धन मैं आपको सौंप दूंगा।' 10 शुभशीलशतक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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