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________________ आश्रम के पास थाण बनाकर वहाँ उसे बांध दिया था। साधुजनों का शान्त जीवन, इन्द्रिय दमन और नियमित दिनचर्या देखकर वह हाथी भी प्रकृति से शान्त हो गया था। पड़ौस के राजा को जब यह ज्ञात हुआ कि राजा का वह दुर्दम हाथी युद्ध में भाग लेने में सक्षम नहीं रहा है, यह बढ़िया मौका है उस राज्य पर आक्रमण कर उस राज्य को अपने अधीन कर लें। पड़ोसी देश के राजा की यह कूट-चर्चा चरों के मुख से पद्मपुर के मन्त्री को ज्ञात हुई। मन्त्री ने राजा को निवेदन किया। राजा ने कहा - मन्त्री महोदय ! मैं क्या कर सकता हूँ? राज्य की रक्षा तो अपने बुद्धिबल एवं राजनैतिक चातुर्य से मंत्री लोग ही करते हैं, आप ही कुछ मार्ग दिखाइये। राजा की बात सुनकर मन्त्री ने गम्भीरता से विचार किया और उस हाथी को तापसों के आश्रम के समीप थाण से हटा कर युद्धशाला के समीप जहाँ सैनिक लोग मार-काट मचाते हुए युद्धाभ्यास कर रहे थे, वहाँ लाकर बांध दिया। उन सैनिकों के शौर्य एवं पराक्रमपूर्ण वातावरण में रहते हुए वह हाथी पुनः संग्राम भूमि में दुर्दम्य रहने की स्थिति में आ गया और युद्ध के लिए सन्नद्ध हो गया। निष्कर्ष यह है कि तापसों के आश्रम के पास रह कर वही हाथी शान्त प्रकृति का हो गया था और वही सैनिकों के मध्य रहकर युद्धक्षम हो गया था। ७१. जैसी भावना, वैसी ही प्रजा की प्रतिक्रिया. एक समय महाराजा विक्रमादित्य भट्ट के साथ घूमने के लिए नगर के बाहर उद्यान में गये। उस समय विक्रमादित्य ने कहा - जाते हुए कार्पटिकों (रखड़ता हुआ भिक्षुक अथवा चित्र दिखाकर आजीविका करने वाले अथवा कावड़ियों) को मारने की मेरी मानसिक इच्छा हो रही है। शुभशीलशतक 101 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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