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________________ __ भट्ट ने कहा - तब तो उन कार्पटिकों की इच्छा भी इसी प्रकार की होगी कि 'राजा मर जाए।' बातचीत के बाद मन्त्री उन कार्पटिकों के समक्ष जाकर बोला - बड़े खेद की बात है कि विक्रमादित्य मौत की गोद में सो गया है। कार्पटिकों ने कहा - 'बहत अच्छा हआ। आज हमारी शराब भी मंहगें मूल्य पर बिकेगी।' यह कहकर कार्पटिक आगे चले गये। मन्त्री ने उनके कथन/मनोभावों को राजा के समक्ष कहा। राजा ने आगे चलते हुए कहा – ये जो आभीरियाँ/दही बेचने वाली ग्वालिने सामने आ रही हैं उनका भोजन और वस्त्र आदि से सम्मान किया जाए। भट्ट ने कहा - तो इनकी मानसिक अभिलाषा भी यही होगी कि 'आपका सब तरफ से भला हो।' भट्ट ने आगे जाकर उन ग्वालिनों से कहा - खेद है कि महाराजा विक्रमादित्य मौत को प्राप्त हो गए। इन वाक्यों को सुनते ही ग्वालिने अत्यन्त दुःखी हुईं और दही के पात्रों को फेंकती हुई बोली – 'आह विक्रमादित्य ! हे सत्यवादी ! हे सात्विक शिरोमणि! हे सर्वोच्च न्याय के प्रर्वतक! हे सर्वजीव के सुखकारक! हम ये क्या सुन रहे हैं? ऐसा नहीं हो सकता। यदि ऐसा हुआ है तो इससे बढ़कर दुःखदायी समाचार नहीं हो सकता।' ऐसा कहती हुए भूमि पर गिरकर लोट-पोट होती हुई रुदन करने लगी। उन ग्वालिनों का राजा के प्रति इस प्रकार का व्यवहार देखकर विक्रमादित्य स्वयं प्रकट हुआ और उन लोगों को धनादि देकर सम्मानित किया। ७२. दान का समय नहीं होता. राजा युधिष्ठिर दान देते समय किसी के भी द्वारा चलायमान करने पर भी चलाएमान नहीं होता था। 102 शुभशीलशतक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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