SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ और पूछा हे कामलते ! क्या कारण है तुमने ऋषि के सिर पर थूक कर उसका अपमान किया? कामलता बोली क्या इसी बात को पूछने के लिए आपने बुलाया था? सुनिये ! जब यह तापस पालकी में बैठा हुआ राजमार्ग पर जा रहा था, अचानक मैं मंगलमुखी उसके सामने आ गई और मुझे देखकर इसने आँखें बन्द कर ली। क्या यही इसकी साधना है ? - अर्थात् - संसार के स्वरूप को नयनों से देखते हुए आँखें बन्द करने की आवश्यकता नहीं है, यदि आँखें मुंदनी ही है तो मन की आँखों को मुंदो । यदि अपने मन की आँखों को मुंद लिया तो संसार का कोई भी पदार्थ सामने नहीं रहेगा। आंखि म मींचिसि मिंचि मन, नयनि निहाली जोइ । जइ मन मींचिसि आपणउं, अवर न बीजी कोइ ॥ कहा भी है ७०. मन का नियंत्रण करने पर बाहरी नेत्र स्वतः ही वश में हो जाते हैं । कारणं बाढं, अर्थात् - मन ही मनुष्यों के लिए संसार-बंधन और मोक्ष का कारण है, इसलिए मनुष्यों को चाहिए कि प्रतिदिन दृढ़ता के साथ मन पर नियन्त्रण करें । 100 - मन अत एव एव Jain Education International वह तापस कामलता वेश्या की इस गूढ़ शिक्षा को सुनकर नतमस्तक हो गया और अपनी गलती को स्वीकार कर मन के नियन्त्रण में दत्तचित्त हो गया । क्रमशः आयु पूर्ण कर वह स्वर्ग को गया । मनुष्याणां, मनो संगति का असर. पद्मपुर नगर के राजा के पास एक हाथी था । वह हाथी हजारों योद्धाओं के बीच में संग्राम में अजेय रहता था । राजा ने उसको तापसों के बन्धमोक्षयोः । नियन्त्रणीयमन्वहम्॥ शुभशीलशतक For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003993
Book TitleShubhshil shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaysagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2005
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy