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आपस में वाद-विवाद हुआ। दोनों पक्षों को सुनकर लोगों ने यह फैसला दिया कुँए को अपने पिता का मानते हुए और उनके ठण्ड से
बचाव के लिए इस पथिक ने अपना कम्बल कुँए में डाला था । अत: खेती के कुछ हिस्से पर इसका भी अधिकार बनता है, वह देना होगा ।
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इस प्रकार उस धूर्त ने मूर्ख ग्रामवासियों को बेवकूफ बनाकर फसल का भाग प्राप्त कर लिया।
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मन की आँखें मींच.
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एक नगर में चन्द्र नामक राजा राज्य करता था । उसी नगर में भ्रमण करता हुआ एक महान् तापस वहाँ आया । वह तापस तपस्या के दौरान किसी स्त्री का मुख कभी भी नहीं देखता था । ४, ५ और ८ उपवासों की लगातार तपस्या करते हुए पारणे के दिन किसी गृहस्थ के घर जाता था । लोग उसे बारम्बार पारणा के लिए आग्रह करते थे तो वह भी पारणे के दिन अलगअलग घर जाता था। उसकी उत्कट तपस्या को देखकर नगर निवासी उसकी बहुत प्रशंसा करते थे ।
एक समय उसकी तपस्या की ख्याति सुनकर उस नगर के राजा ने भी पारणा के लिए विशेष अनुरोध किया । वह पारणे के लिए राजा के घर गया। राजा ने अत्यन्त भावोल्लासपूर्वक उस तपस्वी की भक्ति की । श्रेष्ठ खाद्य पदार्थों से उसका पारणा करवाया। राजा ने उसका बहुत सत्कार किया और विदाई में सम्मान के साथ पालकी में बिठा कर विदा किया।
जिस समय वह तापस पालकी में बैठा हुआ राज-मार्ग पर जा रहा था, उसी समय अकस्मात् ही कामलता नाम की वेश्या सामने आ गई। तापस ने अपने नेत्र बंद कर लिए। तापस द्वारा आँख बन्द करने की क्रिया को देखकर वेश्या झल्ला उठी और भर्ना करते हुए उसके सिर पर थूक दिया। तापस उसी क्षण उल्टे पैरों लौटा और वेश्या द्वारा किये हुए अपमान की घटना राजा को बतलाई । राजा भी मन में दुःखी हुआ । सोचा, ऐसे महान् तपस्वी का अपमान वेश्या ने क्यों किया? निर्णय हेतु राजा ने उस वेश्या को बुलाया
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शुभशीलशतक
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