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" आभू" माग पडसाना
सरिजी महाराज के स्मारक रूप अर्बुद ग्रंथमाला का यह पहिला ग्रन्थ हिन्दी साहित्य में इतिहास की अपूर्व श्रीवृद्धि करनेवाला है। मुझे भी मेरे सिरोही राज्य के इतिहास का दूसरा संस्करण प्रकाशित करने में इससे अमूल्य सहायता मिलेगी।
आपके महान् श्रम की सफलता तो तब ही समझी जायेगी जब कि आपके संग्रह किये हुए सैकड़ों लेख प्रकाशित हो जायेंगे । मुझे यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि उन लेखों का छपना भी प्रारंभ हो गया है । जैन गृहस्थों में अभी तक धर्म भावना बहुतायत से है, अतएव आपके ग्रन्थों का प्रकाशित होना कठिन काम नहीं है । आशा है कि आपके लेख शीघ्र प्रकाशित हो जायेंगे और आबू परके समस्त जैन स्थानों और उनके निर्माताओं का इतिहास जाननेवालों को और भी लाभ पहुंचेगा । आप परोपकार की दृष्टि से जो सेवा कर रहे हैं, उसकी प्रशंसा करना मेरी लेखनी के बाहर है । धन्य है आप जैसे त्यागी महात्माओं को जो ऐसे काम में दत्तचित्त रहते हैं।
राव बहादूर, महामहोपाध्याय पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा. क्युरेटर राजपुताना म्युझियम,
अजमेर.
मैंने ' आबू ' को अब तक इधर उधर से पत्रे उलटाकर देखा है । विस्तार से अभिप्राय कुछ समय पश्चात् सेवा में भेजूंगा । अभिप्राय वस्तुतः क्या लिखा जाय ? शान्तमूर्ति जयंतविजयजी महाराज के वर्षों के अथाक श्रम से निर्मित
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