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अभिप्रायो
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ग्रंथ के सम्बन्ध में कुछ लिखना ठीक वैसी ही धृष्टता है, जैसी सूर्य को दीपक दीखलाने की । मैं इस ग्रंथ रत्न को बडे चाव से पढूंगा ।
प्रोफेसर पं. रामेश्वर गौरीशंकर ही. ओझा M. A
अजमेर.
( ३ )
जैन श्वेताम्बर तीर्थ आबू का इतिहास जिसके सम्पादक शान्तमूर्ति मुनिमहाराज श्री जयंत विजयजी है, मैं ने पढा । इसमें जो संग्रह पाया जाता है वह प्रशंसनीय है । महाराजश्री ने इस इतिहास के सम्पादन में बहुत परिश्रम किया है । जैनतीर्थों के इतिहास में यह पहेला इतिहास है कि जिसमें बहुत खोज, परिश्रम और जांच के साथ अद्भुत लेख, चित्र, वर्णन का संग्रह है । ग्रंथकार श्री ने कितनी स्थिरता से काम किया होगा ? इसका अंदाज तो वे ही लगा सकते हैं कि जो इस विषय को समझते हैं ।
जैनतीर्थ के इतिहास में ७४ चित्र हमने इसी पुस्तक में देखें | चित्र भी अनुपम और ग्रंथ का आवश्यकीय अंग हैं-चित्रों के कारण ग्रंथ की शोभा अधिक बढ गई है । क्यों कि लेखन में तो कदापि अतिशयोक्ति भी होना संभव है, किंतु चित्र से तो पूर्ण प्राचीनता, कला, कौशल्य का भान हो जाता है । शान्तमूर्ति महाराजश्री ने शिलालेखों का संग्रह महेनत के साथ किया है। यदि शिलालेखों के भी फोटु लिए होते और उसी स्वरुप में प्रकाशित कराये होते तो इस इतिहास का महत्व विशेष बढ जाता । लेकिन इतिहास - प्रकाशन के विषय में
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