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________________ सम्यग्दर्शन : शास्त्रीय-विवेचन और आत्मकल्याण को प्रकट करने वाला सम्यक्त्व ही है। इसलिए उसकी प्राप्ति हेतु प्रयास करना चाहिये। मोक्षपाहुड में यहाँ तक कहा गया है कि 'अधिक क्या कहें, जो भी भूतकाल में सिद्ध हुए और भविष्य में होंगे वह सब सम्यक्त्व का ही महत्त्व समझना चाहिए।' किं बहुणा भणिएण? जे सिद्धा णरवरा गए काले। सिज्झिहहि जे वि भविया तं जाणह सम्ममाहप्पं ।।-मोक्षपाहुड, ८८ इस प्रकार स्पष्ट है कि सम्यग्दर्शन के बिना ज्ञान और चारित्र कार्य-सिद्धि नहीं कर सकते। आचारांग के नियुक्तिकार ने कहा है कुणमाणोऽणि निवित्तिं परिच्चयंतोऽवि सयणधणभोए। दिन्तोऽवि दुहस्स उरं मिच्छादिट्ठी न सिज्झइ ।।--आचारांगनियुक्ति अर्थात् यम नियमादि रूप निवृत्ति करने पर भी, स्वजन, धन और भोगों का त्याग करने पर भी पंचाग्नि तप आदि द्वारा शारीरिक कष्ट सहन करने पर भी मिथ्यादृष्टि सिद्धि नहीं प्राप्त कर सकता है। आगे नियुक्तिकार कहते हैं तम्हा कम्माणोअ जेउमणो दसंणम्मि पजइज्जा। दसणवओ हि सफलाणि हुंति तवनाणचरणाई ।।--आचारांगनियुक्ति, २२१ अर्थात् कर्मरूपी सेना को जीतने के लिए सम्यग्दर्शन में यत्न करना चाहिए, क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना कर्मो का क्षय नहीं हो सकता। सम्यक्त्वी के द्वारा किये हुए तप-जप, ज्ञान और चारित्र ही सफल होते हैं। अतः सम्यक्त्व-प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए। उपर्युक्त उद्धरणों से सम्यग्दर्शन की महिमा और गरिमा का स्पष्ट परिचय मिल जाता है। सारांश यह है कि यह सम्यग्दर्शन अनुपम सुख का भण्डार, सर्व कल्याण का बीज और संसार-सागर से पार उतारने के लिए एक महान् यानपात्र (जहाज) है। जिसने सम्यग्दर्शन को प्राप्त कर लिया, उसके समक्ष तीन लोक के राज्यों का सुख भी कुछ मूल्य नहीं रखता। सम्यग्दर्शन जिस किसी भी आत्मा में प्रकट हो जाता है वह कृतकृत्य हो जाता है, निहाल हो जाता है। सम्यग्दर्शन की ज्योति जब साधक के जीवन-पथ को आलोकित कर देती है, तो इस अनन्त संसार-सागर में साधक को किसी प्रकार का भय नहीं रहता है। वह यह समझता है कि सम्यग्दर्शन रूप चिन्तामणि रत्न जब मेरे पास है, मुझ में ही है, तब मुझे किस बात की चिन्ता और किस बात का भय? जिसके पास यह अक्षय निधि हो वह दीन-हीन कैसे हो सकता है। ऐसी अद्भुत, अनुपम और अद्वितीय महिमा है सम्यग्दर्शन की। सम्यग्दर्शन वह पारसमणि है जिसके स्पर्श मात्र से मिथ्यात्व और अज्ञान रूपी लोहा सम्यक्त्व और ज्ञान रूपी स्वर्ण में बदल जाता है। ___ सम्यग्दर्शन की महिमा को प्रकट करने के लिए सूत्रकृतांग सूत्र में सूत्रकार कहते हैं जे याबुद्धा महाभागा वीरा असमत्तदंसिणो। असतेसिं परक्कंतं, सफलं होड सव्वसो॥ जे य बुद्धा महाभागा वीरा सम्मत्तदंसिणो। सुद्धं तेसिं परक्कंतं अफलं होई सव्वसो।।-सूत्रकृतांग अ.८ गाथा २२-२३ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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