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परिशिष्ट (अ) श्वेताम्बर-ग्रन्थों में सम्यग्दर्शन (१) मोक्खमग्ग-गई तच्चं, सुणेह जिणभासियं ।
चउकारणसंजुत्तं, नाण-दंसण-लक्खणं ॥ नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। एस मग्गुत्ति पन्नतो, जिणेहि वरदंसीहि ।। नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा।
एयं मग्गमणुपत्ता जीवा गच्छंति सोग्गइं ।।-उत्तराध्ययन सूत्र, २८.१-३ जिनेश्वरों द्वारा भाषित, ज्ञान एवं दर्शन के लक्षण से युक्त, यथार्थ मोक्षमार्ग की प्राप्ति चार कारणों (ज्ञान, दर्शन, चारित्र एवं तप) से होती है, उसे सुनो। __ज्ञान और दर्शन इसी प्रकार चारित्र तथा तप, यह (चारों मिलकर) मोक्षमार्ग हैं, ऐसा केवलदर्शी-केवलज्ञानी सर्वज्ञ जिनेन्द्रों ने बताया है। ___ज्ञान और दर्शन, इसी प्रकार चारित्र और तप इस (कारण-चतुष्टय युक्त) मोक्षमार्ग को प्राप्त करने वाले जीव सद्गति अर्थात् सिद्धावस्था को प्राप्त करते हैं।
(२) तहियाणं त भावाणं. सब्भावे उवएसणं ।
भावेण सद्दहंतस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ॥ उत्तरा., २८.१५ . जीवाजीवा य बंधो य पुण्णं पावासवो तहा।
संवरो निज्जरा मोक्खो संति एए तहिया नव ॥ उत्तरा. २८.१४ तथाभूत भावों (पदार्थो) के सद्भाव में स्वभाव से या किसी के उपदेश से भावपूर्वक श्रद्धान करने वाले के सम्यक्त्व कहा गया है ।
तथाभूत भाव या पदार्थ नौ हैं-१. जीव २. अजीव ३. बंध ४. पुण्य ५. पाप ६. आस्रव ७. संवर ८. निर्जरा और ९. मोक्ष ।
(३) नत्थि चरितं सम्मत्तविहूणं, दंसणे उ भइयव्वं।
सम्मत्तचरित्ताइ जुगवं, पुव्वं व सम्मत्तं ॥ उत्तरा. २८.२९ सम्यक्त्व (सम्यग्दर्शन) के बिना चारित्र (सम्यक्) नहीं होता, किन्तु दर्शन (सम्यग्दर्शन) के होने पर चारित्र की भजना है। (अर्थात् सम्यग्दर्शन होने पर सम्यक् चारित्र होना अनिवार्य नहीं है) सम्यक्त्व एवं चारित्र कदाचित् एक साथ होते हैं अथवा पहले सम्यक्त्व होता है एवं फिर चारित्र।
(४) नादंसणिस्स नाणं नाणेण विणा न हुंति चरणगुणा ।
__ अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥ उत्तरा. २८.३० दर्शन (सम्यक्) रहित को ज्ञान (सम्यक्) नहीं होता, ज्ञान के बिना चारित्रगुण (सम्यक्) नहीं होते, चारित्रगुणों से रहित साधक को मोक्ष नहीं होता, और (कर्मों से) अमुक्त को निर्वाण (शान्तिमय सिद्धपद) प्राप्त नहीं होता।
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