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सम्यग्दर्शन : विविध पद्मावती का ही छत्र चुराकर ले गये। क्या इससे यह सिद्ध नहीं है कि शासन देवों की तथा तंत्र-मंत्र शक्ति सम्बन्धी मान्यता मिथ्या है, धर्म व धर्मात्माओं की रक्षक पद्मावती, क्षेत्रपाल या कोई भी और शक्ति नहीं है तथा स्वामी समन्तभद्र, मुनि मानतुंग आदि के भी उपसर्ग दूर हुए हैं वे भी स्वयं की योग शक्ति से दूर हुए न कि किसी देवता की सहायता से? कल्पित कथा के अनुसार धरणेन्द्र और पद्मावती ने भ. पार्श्वनाथ पर कमठ द्वारा दिये उपसर्ग को दूर किया । उस समय वे केवल मुनि अवस्था में थे, परन्तु अंध भक्तजन उनकी केवली अवस्था की प्रतिमाओं को ऊपर धरणेन्द्र का फण बनवाकर उन्हें पूज रहे है ?
(४) शासन, देवों की मान्यता के समर्थन में यह भी कहा गया है कि दूसरे धर्मों के देवताओं को पूजने से तो अपने देवता को पूजना अच्छा है। सो वैसे तो जहर चाहे अपने घर का खावो. चाहे दूसरे का, या बाजार से लाकर खावो, सबका फल समान है। परन्तु जब शासन देवों का अस्तित्व ही नहीं है और जैसा कि मैं आगे बताऊँगा, अन्य धर्मों के देवताओं का भी अस्तित्व सिद्ध नहीं होता, तो उनके पूजने की क्या सार्थकता है, वह तो मिथ्यात्व है। इसी प्रकार शासन देवों की मान्यता के समर्थक विद्वान् यह भी कहते हैं कि हम उन्हें अरहंतों के समान मानकर थोड़े ही पूजते हैं, हम तो उनके प्रति साधर्मी वात्सल्य दिखाते हैं। सो इसका भी उत्तर है कि जब शासन देवों का अस्तित्व ही सिद्ध नहीं होता तो साधर्मी वात्सल्य किसका? यह तो मूढ़ता है। यदि यह भी मान लिया जावे कि शासन देव-देवियों का अस्तित्व है तो साधर्मी वात्सल्य तो तब कहा जा सकता है कि जब उनसे कोई मनौती व कामना की पूर्ति न चाही जाती हो। परन्तु शासन देवों का पूजक कोई भी ऐसा नहीं है कि जो किसी कामना या मनौती के बिना उन्हें पूजता हो। पूजा भी उसकी की जाती है जो पूज्य होता है । जहां साधर्मी वात्सल्य मात्र दिखाया जाता है, वहाँ उसकी पूजा नहीं की जाती जबकि पद्मावती आदि की तो मन्दिर में मूर्ति स्थापित कर द्रव्य पूजन व आरती तक की जाती है। असल में शासन देवों की तो पूज्य भाव से ही पूजा की जाती है। उसे साधर्मी वात्सल्य कहना मात्र धोखा है, मिथ्यात्व है। मनौतियों कैसे पूरी होती हैं ? यहां यह प्रश्न खड़ा होता है कि यदि शासन देवों का अस्तित्व ही नहीं है, तीर्थंकर प्रतिमाओं में भी अतिशय या चमत्कार नहीं है तो उनकी मनौतियाँ करने से लोगों की कामनाएँ कैसे पूरी हो जाती हैं ? अन्य धर्म वाले देवताओं की मनौतियाँ भी कैसे पूरी हो जाती हैं? उत्तर(१) जो लोग इनकी मनौतियाँ नहीं करते, क्या उनके काम सिद्ध नहीं होते?
(२) मनौतियाँ करने वालों में भी किसी के देवता हिन्दू हैं, किसी के जैन हैं, कोई पीरजी की मनौती करता है, कोई किसी कब्र की करता है। हिन्दू कहता है कि मेरे ही देवता वास्तविक हैं और सब कल्पित। इसी तरह और भी अपने अलावा दूसरों के देवताओं को कल्पित बताते हैं। सभी धर्मों के मानने वाले अपने-अपने देवताओं की मनौतियाँ करते हैं, वे कैसे पूरी हो जाती हैं। ___(३) मनौती करने वालों की कई मनौतियाँ असफल क्यों होती रहती हैं। किसी भी देवता या अरहंत प्रतिमा का ऐसा कोई भी भक्त नहीं है कि जिसकी सभी
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