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________________ ४०६ जिनवाणी-विशेषाङ्क ___भीड़ के साथ हम जुड़े रहते है-भय के कारण। अकेले होने में डर लगता है। मंदिर तुम चले जाते हो, पिताजी भी जाते थे। पिताजी के पिताजी भी जाते थे। उनसे पूछा जाता, वे कहते, हम क्या करें, हमारे पिताजी जाते थे, उनके पिताजी जाते थे। ऐसी पंक्तिबद्ध मूढ़ता चलती रहती है। हिम्मत होनी चाहिए साधक में, कि वह इस पंक्ति के बाहर निकल आये। अगर उसे ठीक लगे तो बराबर करे, लेकिन ठीक लगना चाहिए स्वयं की बुद्धि को। यह उधार नहीं होना चाहिए। और अगर ठीक न लगे, तो चाहे लाख कीमत चुकानी पड़े तो भी करना नहीं चाहिए, हट जाना चाहिए। दूसरी मूढ़ता को उन्होंने कहा-देवमूढ़ता, कि लोग देवताओं की पूजा करते हैं। कोई इन्द्र की पूजा कर रहा है कि इन्द्र पानी गिरायेगा, कि कोई कालीमाता की पूजा कर रहा है कि बीमारी दूर हो जायेगी। लोग देवताओं की पूजा कर रहे हैं। महावीर कहते हैं. देवता भी तो तम्हारे ही जैसे हैं। यही वासनायें, यहीं जाल, यही जंजाल उनका भी है। यही धन-लोलुपता, यही पद-लोलुपता, यही राजनीति उनकी भी है। तो अपने ही जैसों की पूजा करके, तुम कहां पहुंच जाओगे? जो उन्हें नहीं मिला है वह तुम्हें कैसे दे सकेंगे? महावीर और बुद्ध ने मनुष्य की गरिमा को देवता के ऊपर उठाया। महावीर और बुद्ध ने देवताओं को आदमी के पीछे छोड़ दिया। महावीर और बुद्ध ने कहा कि जो निर्विकार हो गया है, जो निष्कांक्षा से भर गया है, जो निष्काम हो गया है, देवता भी उसके पैर छुएं, देवता भी उसके चरणों में झुकें । हिन्दू बहुत नाराज हुए, क्योंकि जैन कथायें है, बौद्ध कथायें हैं-ब्रह्मा, विष्णु, महेश को भी बुद्ध और महावीर के चरणों में झुका देती है। बुद्ध को जब ज्ञान हुआ, तो खुद ब्रह्मा ने आकर चरण छुआ। हिन्दुओं को बड़ा कष्ट हो जाता है कि यह क्या बात हुई, ब्रह्मा से पैर छुआ रहे हो । ब्रह्मा तो जगत् का स्रष्टा है । उसने तो बनाया, और ब्रह्मा से पैर छुआ रहे हो ! वे कहते हैं, ब्रह्मा का जीवन तो उठाकर देखो। कथा है, कि उसने पृथ्वी को बनाया, और वो पृथ्वी पर मोहित हो गया, कामातुर हो गया। कामान्ध होकर पृथ्वी के पीछे भागने लगा। पिता, बेटी के प्रति कामान्ध हो गया। बेटी घबड़ा गई कि इस पिता से कैसे बचें। तो वह अनेक-अनेक रूपों में छिपने लगी। वह गाय बन गई तो ब्रह्मा सांड बन गया और इस तरह सारी सृष्टि हुई। __जैन और बौद्ध कहते हैं कि ये तो देवता भी कामातुर हैं। हिन्दू देवताओं की कथायें पढ़ो। किसी ऋषि की पत्नी सुन्दर है, तो कोई देवता लोलुप हो जाता है, काम-लोलुप हो जाता है, तो षड्यंत्र करके स्त्री के साथ कामभोग कर लेता है। महावीर और बुद्ध कहते हैं कि यह तो देवमूढ़ता हई। अगर पूजना है तो उनको पूजो, जिनके जीवन से सारी आकांक्षा चली गई है। अगर पूजना है, तो उनको पूजो, जिनके जीवन से सारे मल-दोष समाप्त हो गए हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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