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________________ ३८२ जिनवाणी-विशेषाङ्क आदि को बनाये रखना है। उनका दृढ़ विश्वास था कि सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनैतिक समस्याओं का स्थायी समाधान केवल शान्तिपूर्ण अहिंसात्मक उपायों द्वारा ही किया जा सकता है, हिंसा द्वारा नहीं। लेकिन साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह कायरों का नहीं, वीरों का आभूषण है। कमजोर एवं कायर कभी अहिंसक नहीं बन सकते। अहिंसा के प्रयोग के लिए असीम आत्मबल की आवश्यकता है। अहिंसक व्यक्ति ईश्वर के अतिरिक्त अन्य किसी से नहीं डरता। इस प्रकार भगवान् महावीर के अहिंसा के सिद्धान्त को वर्तमान युग में गांधीजी ने प्रतिष्ठित किया और बताया कि एक जागृत मनुष्य को अपने आचरण में अहिंसा की पालना करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मनुष्य की गरिमा अहिंसा की प्रतिष्ठा में है। यही बात उसे पशु से अलग करती है। जिस क्षण हमारे में मानव प्रतिष्ठा जागृत होती है उस वक्त हम हिंसा से ऊपर उठ जाते हैं एवं अहिंसा को आचरण बना लेते हैं। ___गांधीजी के अनुसार अहिंसा में न केवल प्रेम, करुणा एवं जीवन की पवित्रता है, अपितु उसमें मानव-सम्मान और प्रतिष्ठा भी शामिल है। यह उसका आत्मबल है। मानव प्रतिष्ठा इसी में है कि मनुष्य अपने आत्मबल को पहचाने और उसी के अनुरूप 'जागृत मनुष्य' का आचरण बनाए । 'जागृत मनुष्य' कायर नहीं होता। कायरता मानव-गरिमा के विरुद्ध है। जागृत मनुष्य के लिए अहिंसा का अर्थ अत्याचारी के समक्ष दुर्बलतापूर्वक समर्पण नहीं बल्कि उसके अशुभ संकल्प का अपने समस्त आत्मबल से प्रतिकार करना है। - गांधीजी की यह दृढ़ मान्यता थी कि 'जागृत मनुष्य' सत्य का अनुयायी होता है। वह सत्य का अन्वेषक भी होता है। दार्शनिक दृष्टिकोण से सत्य का अर्थ है-यथार्थ ज्ञान । सत्य का अर्थ है, 'होने का भाव' या 'अस्तित्व' जो तथ्य जिस रूप में देखा, सुना या अनुभव किया गया है, उसे उसी रूप में व्यक्त करना सत्य है । सत्य सूर्य के समान है, जिसका प्रकाश सबको आलोकित करता है। गांधीजी के अनुसार विचार, वाणी एवं आचरण में सत्य होना ही सत्य है। एक तरह से सत्य के आदर्श को उनके सम्पूर्ण नैतिक दर्शन का प्राण माना जा सकता है, क्योंकि उनके सभी नैतिक सिद्धान्त सत्य पर ही आधारित हैं। उनके अनुसार सत्य ही ईश्वर है, उसी में ज्ञान तथा आनन्द निहित है और उसी के कारण सम्पूर्ण जगत् का अस्तित्व है। उनके अनुसार सत्य सर्वोच्च नियम है एवं अहिंसा सर्वोच्च कर्त्तव्य । एक 'जागृत मनुष्य' सदैव सत्य आचरण करता है, सम्यक् दर्शन अपनाता है एवं सत्य का अन्वेषक होता है । एक 'जागृत मनुष्य' के जीवन में ब्रह्मचर्य का बहुत महत्त्व है। सामान्य भाषा में ब्रह्मचर्य का अर्थ है इन्द्रियों एवं वासनाओं का संयम । लेकिन गांधीजी के अनुसार ब्रह्मचर्य का पूर्ण एवं उचित अर्थ ब्रह्म की खोज है। यह पूर्ण इन्द्रिय संयम के बिना असंभव है। इस प्रकार ब्रह्मचर्य का अर्थ है मन, वचन तथा कर्म से समस्त इन्द्रियों का पूर्ण संयम अथवा नियंत्रण । ब्रह्मचर्य का लक्ष्य है समस्त मानवीय शक्तियों को आध्यात्मिक विकास के लक्ष्य पर केन्द्रित करना। इसकी पालना 'जागृत मनुष्य के लिए वांछित है। गांधीजी ब्रह्मचर्य के पालन के लिए ईश्वरोपासना तथा ईश्वर कृपा को आवश्यक मानते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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