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________________ सम्यग्दर्शन : विविध ३७३ इस्लाम में निर्गुण या निराकार ईश्वर की उपासना का प्रावधान है। इस्लाम के प्रमुख अंग ६ प्रकार के सिद्धान्त (ईमान) और ४ प्रकार के कर्मकाण्ड (दीन) हैं। ये ६ ईमान हैं - अल्लाह की एकात्मकता और सर्वशक्तिमत्ता; खुदा और पैगम्बर में अटूट आस्था एवं उनके आदेशों का पालन ; फरिश्तों (देवदूतों) जैसे गेब्रियल को मानना ; कुरान धर्मग्रन्थ में विश्वास ; मृत्यु के पश्चात् न्याय 'इन्साफ' के नियत दिन को मानना । इस्लाम के ४ दीन हैं - नमाज (दिन में ५ बार प्रार्थना) ; रोजा (रमजान मास में उपवास); जकात (दान) तथा हज (मक्का-मदीना की तीर्थयात्रा)। इस्लाम को मानने वाले अनुयायी इन ४ दीनों का भलीभांति पालन करते हैं। अपने घर पर या उपासना-स्थल ‘मस्जिद' में जाकर प्रतिदिन 'नमाज' पढ़ते हैं, जो दिन में ५ बार होती है। इसे कलमा पढ़ना भी कहते हैं। वर्ष में एक बार रमजान के महीने में प्रतिदिन उपवास (रोजा) रखते हैं जिसमें सूर्योदय से सूर्यास्त तक अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। प्रत्येक शुक्रवार को मस्जिद में सामूहिक प्रार्थना (नमाज जुम्मा) के लिए एकत्रित होते हैं। मुस्लिम लोग प्रतिमाह जकात (दान) अर्थात् गरीबों को अपनी आमदनी का चालीसवां भाग अर्थात् २-१/२ प्रतिशत दान देते हैं अपने जीवन में सुविधा एवं सामर्थ्य के अनुसार एक बार हज (तीर्थ यात्रा) करते हैं, जिसमें अरब में स्थित तीर्थस्थल मक्का, जहां खुदा का निवास स्थल है, वहाँ समूहों में जाकर 'काबे' में स्थित 'संगे असवद' पवित्र काले पत्थर की परिक्रमा सामूहिक रूप से करते हैं। वहीं स्थित 'जमजम' कुए के पवित्र जल का सेवन करते हैं। . इस्लाम में अमीर-गरीब, छोटे-बड़े, ऊंच-नीच का भेदभाव नहीं है, वरन् समता का दृष्टिकोण व्याप्त है जो लोकतंत्रात्मक सत्ता कहलाती है। यह एक पूर्ण व्यवस्था और सम्पूर्ण जीवन-पद्धति है। इस्लामी जीवन के सम्पूर्ण विधान और प्रमुख शिक्षाओं का आधार ईश्वर की एकात्मकता एवं ईश्वरीय प्रेम (इश्के-हक़ीक़ी) में आस्था है । इस्लाम द्वारा निर्दिष्ट धार्मिक जीवन की सम्पूर्ण व्यवस्था में निम्नगामी प्रवृत्तियों और मलिनताओं का परित्याग करके पूर्ण विश्वास, अनुराग, भक्ति व श्रद्धा के साथ तन-मन-धन से ईश्वर की उपासना करना ही जीवन-लक्ष्य है । कलुषित विचारों तथा दुर्वासनाओं का दमन करने के लिए प्रार्थना, उपवास, दान इत्यादि का प्रावधान रखा गया है । आध्यात्मिक आराधना एवं सतत साधना द्वारा आत्मिक उपलब्धि के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचना मानव-जीवन का लक्ष्य बनता है। हिन्दू (सनातन) धर्म में व्यक्त ईश्वर-प्राप्ति के तीन मार्ग इस्लाम में भी बतलाए गए हैं - ज्ञानयोग अर्थात् 'मारिफ़त', कर्मयोग - व्यावहारिक क्रियाएं; भक्तिमार्ग - ‘इश्क़े इलाही' अर्थात् ईश्वर प्रेम । प्रेमधर्म ही सर्वोत्तम है और सभी धर्मों का सार है। इस्लाम ईश्वर से भयभीत होने का भी आदेश देता है जिससे व्यक्ति अनैतिक, असामाजिक एवं अपराध-व्यवहार न करे और ईश्वरीय दण्ड के भय से आक्रान्त रहे । इस्लाम का सन्देश है भ्रातृत्व, शान्ति, समता और समर्पण । कुरान शरीफ के अनुसार 'शरीअत' अर्थात् धर्मशास्त्र के अनुकूल आचरण करना है, जिसमें 'तरीक़त' अर्थात् साधना, 'हक़ीक़त' अर्थात् तत्त्व-दर्शन धर्मग्रन्थ में वर्णित है। पारसी धर्म में आस्था पारसी अर्थात् जरथुस्त्र धर्म के प्रवर्तक महात्मा ज़रदुश्त हैं जो ईश्वर के दूत हैं। पारसी धर्म में ईश्वर को 'अहुरमज्द' के नाम से सम्बोधित किया जाता है। पारसियों Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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