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________________ ३७२ जिनवाणी-विशेषाङ्क अनुसार ईश्वर ने अपने पुत्र ईसा, 'क्राइस्ट' (यीश) को जगत् के उद्धार के लिए पृथ्वी पर भेजा है, जो ईसाइयत के मूल प्रवर्तक हैं। ईसाई मत का धर्म-दर्शन, नैतिक आचरण का प्रारूप तथा भक्ति का स्वरूप ईसामसीह और अन्य सन्त-महात्माओं के चरित्र निरूपण, जीवनशैली एवं वाणी में मिलता है । इनके उपदेश धर्म-ग्रन्थ 'बाइबिल' 'न्यू टेस्टामेन्ट' (नयी बाइबल) में उद्धृत हैं। बाइबिल ईसाई धर्म का पवित्र धर्म-ग्रन्थ है, अमूल्य निधि है जिसमें ईश्वर-प्रेम और मानव-सेवा को जीवन के प्रमुख लक्ष्य बतलाया गया है । प्रभु की कृपा प्राप्त करना ही संसार के सर्वोत्कृष्ट धन-वैभव को प्राप्त करना है। भक्ति के द्वारा आत्म-समर्पण, नियमित प्रार्थना, सन्त-महात्माओं के उपदेश सुनना और उन्हें आचरण में लाना, पापकर्म की 'कन्फेशन', (आत्म-स्वीकृति) तथा तपस्या इत्यादि धार्मिक क्रियाओं का निष्पादन जीवन और व्यवहार के प्रमुख अंग हैं। इन्हीं के द्वारा सुखमय-आनन्दमय जीवन व्यतीत किया जा सकता है। प्रभु यीशु (ईसा मसीह) के उपदेश एवं वचनामृत मनुष्यों में सर्वज्ञान से परिपूर्णता प्रदान करते हैं। ये स्तोत्र, गीत एवं आध्यात्मिक-स्तवनों से शिक्षण एवं दिशा बोध करवाते हैं। ये मानव-मात्र के प्रति दया व करुणा द्वारा अन्तःकरण में ईश्वरीय प्रेम की भावना जागृत करते हैं । यीशु ने मनुष्यों को न्याय, कर्त्तव्य-पालन और अहिंसा का उपदेश दिया। नम्रता, सहनशीलता, दयालुता, आत्मशुद्धि, शान्तिप्रियता एवं भ्रातृत्व की भावनाओं के विकास पर बल दिया। ईसाई धर्म अक्रोध, समर्पण, क्षमाशीलता, त्याग, शत्र से भी प्रेम, सेवामय प्रवृत्ति और समस्त प्राणियों के प्रति दया की शिक्षा देता है । महात्मा बुद्ध ने भी कहा है कि वैर का शमन वैर से नहीं वरन् अवैर से होता है । वेदों में भी कहा गया है कि दुर्जनों के आक्रमण का प्रतिकार सज्जन तितिक्षा से करते हैं, ईसाई मत में दीक्षा ग्रहण करना 'बपतिस्मा' कहलाता है । ईसाई लोग प्रत्येक रविवार को सुबह के समय अपने पूजा-स्थल गिरजाघर (चर्च) में सामूहिक रूप से प्रार्थना के लिए एकत्रित होते हैं। इस्लाम में धर्म-श्रद्धा इस्लाम को मानने वाले अनुयायी 'मोहम्मदन' नहीं वरन् मुसलमान या मुस्लिम कहलाते हैं । इस्लाम मत के अनेक रसूलों में अन्तिम पैगम्बर हजरत मुहम्मद हैं जो अल्लाह या खुदा के दूत कहे गए हैं। उनके मुख से निकले वचन इस्लाम के धर्म-ग्रन्थ कुरआन-कुरानशरीफ या कुरान मजीद में उद्धृत हैं। मुहम्मद साहब का सम्पूर्ण जीवनवृत्त एक अन्य ग्रन्थ 'हदीस' में विस्तार-पूर्वक वर्णित है । कुरानशरीफ के अनुसार संसार का जन्मदाता ईश्वर 'अल्लाह' है और संसार के समस्त प्राणी अल्लाह के 'बन्दे' दास हैं। अल्लाह सर्वाधिक महत्तायुक्त है, सर्वशक्तिमान है तथा उसके कार्यों और आदेशों में अटूट आस्था एवं अनुपालन आवश्यक है। ईश्वर के न्याय में पूर्ण विश्वास तथा शुभ कर्म एवं भलाई में रत होना उसकी आज्ञा का पालन है। इस्लाम के अनुसार ईश्वर एक है और उसके अतिरिक्त दूसरा कोई नहीं है। अल्लाह के अतिरिक्त किसी और प्रकार के विश्व-निर्माणकर्ता को मानना तथा उसकी उपासना करना निषिद्ध है। इस्लाम में अल्लाह के अतिरिक्त कोई और पूजनीय नहीं है। इस्लाम का एक मात्र आशय एकेश्वरवाद है तथा बहुईश्वरवाद या बहुदेववाद का उसमें निषेध है। इस्लाम में मूर्तिपूजा 'बुतपरस्ती' का भी निषेध है। इस्लाम नास्तिकवाद, द्वैतवाद और साम्यवाद (कम्युनिज्म) का भी विरोध करता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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