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________________ ३७० हुए भी आइन्सटाइन कहते हैं जिनवाणी- विशेषाङ्क "I believe in Spinoza's God who reveals himself in the orderly harmony of what exists; not in a God who concerns himself with the fate and actions of human beings." स्पीनोजा अपने सर्वेश्वरवाद की धारणा के कारण कट्टरपंथियों के कोप का शिकार हुआ था और वे उसे छिपा हुआ नास्तिक कहते थे । यह सही भी है कि स्पीनोजा की ईश्वर की धारणा सभी ईश्वर - केन्द्रित - भारतीय और सेमेटिक - धर्मदर्शनों के भक्ति मार्गों से भिन्न है जो ईश्वर को पुरुष-रूप (Personal God) में मानते हैं । फिर भी यह कहा जा सकता है कि मानवजाति का अधिकतर भाग अपने-अपने धर्म में वर्णित ईश्वर को सर्वशक्तिमान्, सर्वज्ञानी, प्रेम और दया के सागर के रूप में मानता है । विलियम जेम्स के अनुसार इसका कारण मनुष्य की उपयोगितावादी प्रकृति (Pragmatic nature) है। "It elevates and reassures.” यह मनुष्य की संवेगात्मक प्रकृति को एक अजीब मस्ती प्रदान करता है। विलियम जेम्स ने अपने प्रसिद्ध लेख 'Fixation of Belief' में उन मनोवैज्ञानिक तत्त्वों पर प्रकाश डाला है। जिनके कारण मनुष्य में सगुण ईश्वर में श्रद्धा बनती है और जिनसे श्रद्धा को शक्ति मिलती रहती है । वे धर्म चाहे पश्चिम एशिया के हों या भारतीय । -८७, अजीत कालोनी, जोधपुर सम्यग्दर्शन Jain Education International किसी निमित्त से अचानक भीमकाय चट्टानों की छाती से रिसने लगा शीतल प्रांजल आरोग्यदायी जल किसे पता था ? यह मामूली सा प्रवाह स्रोत- महास्रोत बन कोटि-कोटि कण्ठों की प्यास बुझाता शुष्क - ऊसर धरा को सरसब्ज बनाता बन जायेगा कालजयी महासागर । For Personal & Private Use Only - दिलीप धींग जैन, बम्बोरा www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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