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सम्यग्दर्शन और नैतिकता
___p न्यायाधिपति श्रीकृष्णमल लोढा सम्यग्दर्शन के साथ नैतिकता का गहन सम्बन्ध है। जहाँ सम्यग्दर्शन होगा वहाँ नैतिकता स्वत: आ जाएगी, किन्तु जहाँ नैतिकता हो वहाँ सम्यग्दर्शन हो, यह अनिवार्य नहीं है। सम्यक्त्व अथवा सम्यग्दर्शन का अर्थ है-सत्यदृष्टि, यथार्थदृष्टि। इसे यथार्थता अथवा उचितता भो बोलचाल की भाषा में कह सकते हैं। जैन धर्म के अनुसार अयथार्थदृष्टि को मिथ्यात्व अथवा मिथ्यादृष्टि कहा गया है। मिथ्यात्व दूर होता है सम्यग्दर्शन से। __जैन धर्म के अनुसार मोक्ष-साधना का प्रवेशद्वार सम्यग्दर्शन है। बौद्ध और वैदिक दोनों परम्पराओं ने भी इसकी पुष्टि की है। बौद्धदर्शन के अनुसार सम्यक् दृष्टिकोण निर्वाण का किनारा है (अंगुत्तरनिकाय १०/१२)। मनुस्मृति कहती है कि सम्यग्दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति को कर्म-बन्धन नहीं होता (मनुस्मृति ६/७४) मनुस्मृति का यह वाक्य आचारांग (१/३/२) के 'सम्मत्तदंसी न करेइ पावं' कथन की प्रतिच्छाया है। गीता में सम्यग्दर्शन के स्वरूप श्रद्धा को ज्ञान का साधन मानते हुए कहा है- श्रद्धावांल्लभते ज्ञानम्-(गीता ४/३९)
व्यवहारदृष्टि से सम्यग्दर्शन का सर्वसम्मत लक्षण है-'पदार्थों का दुभिनिवेश-रहित यथार्थ श्रद्धान सम्यग्दर्शन है।'
आगम-सम्मत व्यावहारिक दृष्टि से सम्यग्दर्शन का लक्षण है(i) शुद्ध देव-गुरु-धर्म की श्रद्धा :
अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवं सुसाहुणो गुहुणो।
जिणपण्णत्तं तत्तं, इइ समत्तं मए गहियं ।।-आवश्यक सूत्र (ii) जीव-अजीवादि नव तत्त्वों का श्रद्धान :
तहियाण तु भावाणं सब्भावे उवएसेणं ।
भावेणं सद्दहंतस्स, सम्मत्तं तं वियाहियं ।-उत्तराध्ययनसूत्र २८/१५ सम्यग्दर्शन युक्त व्यक्ति सदा अमूढ़ रहता है सम्मदिट्ठी सया अमूढे ।-दशवैकालिक सूत्र १०/७
सम्यग्दर्शन नैतिकता एवं नैतिक प्रगति का स्वाभाविक आधार है-आत्म तत्त्व को समझना । प्राचीन आचार्यों ने इसे समझाते हुए स्पष्ट शब्दों में कहा है
'अय मानव ! यह निश्चय समझ कि यदि कोई स्थायी और टिकाऊ चीज है तो उसे तुझसे कोई अलग नहीं कर सकता। पर पहले यह अच्छी तरह समझ कि तेरी चीज़ क्या है और तू स्वयं क्या है। जब तुझे अपने स्वयं का सही ज्ञान हो जायेगा, स्वयं पर विश्वास हो जायेगा तो तझे सत्कर्म के लिये किसी अन्य के द्वारा प्रेरणा की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। ओ मानव ! वस्तुतः अभी तू बाहर की भौतिक पुद्गल लीला में उलझ रहा है, तुझे अपनी शक्ति पर विश्वास नहीं है। तू निज गुण को * पूर्व न्यायाधीश,राजस्थान उच्च न्यायालय एवं पूर्व अध्यक्ष राज्य आयोग,उपभोक्ता संरक्षण,राजस्थान
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