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जिनवाणी-विशेषाङ्क पराया और भौतिक संपदा , जो कि वस्तुतः पर-गुण है, उसको अपना मान बैठा है। बस यही तो सबसे बड़ा झमेला है जो भव-भ्रमणादि सब अनर्थों का मूल है।'
सम्यक्त्वरत्नान्न परं हि रत्न, सम्यक्त्वमित्रान्न परं हि मित्रम् सम्यक्त्वबंधोर्न परो हि बन्धुः
सम्यक्त्वलाभान्न परो हि लाभः -सूक्त मुक्तावली, अधिकार ५५ श्लोक ८।। समकित रूपी रत्न से कोई श्रेष्ठ रत्न नहीं, और सम्यक्त्व रूपी मित्र से बढ़ कर कोई उत्तम मित्र नहीं। समकित रूपी भाई से बढ़कर दूसरा कोई भाई नहीं। सम्यक्त्व के लाभ के समान दूसरा कोई लाभ नहीं।
सम्यग्दर्शन की प्राप्ति में कभी विलम्ब नहीं होगा यदि हमारी दृष्टि निर्मल हो जाये और यह विश्वास कर लिया जाये कि टिकने वाली अविनश्वर चीज क्या है, और विनष्ट होने वाली चीजें क्या क्या हैं?
जैनाचार्य श्रीमद् जयन्तसेनसूरि के शब्दों में 'सम्यग्दर्शन आत्मिक वैभव प्रदायकता-प्राप्ति के अधिकार पत्र से सम्पन्न है। जहां तक सम्यग्दर्शन नहीं वहां तक आत्मिक वैभव प्राप्त करने की योग्यता भी नहीं। यह तो स्वयं को स्वाभिमुख बनाने का श्रेष्ठतम सहारा है। भौतिक वैभव सम्पूर्ण जगत् का अधिगत कर लिया जाये तथापि शून्य है और अलौकिक आत्मिक-वैभव प्रदायक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति शून्यावकाश को अंक-श्रेणी से अलंकृत करती है। शून्य कभी अंक नहीं बनता, किन्तु अंक पर लगे प्रत्येक शून्य की शक्ति उत्तरोत्तर बलवती बन जाती है।' ___ यह स्पष्ट है कि हमारे धर्म का, हमारे व्रत-नियम एवं साधना का मूल दर्शन सम्यग्दर्शन है । सम्यग्दर्शन से अनादिकालीन आत्मा की दुष्प्रवृत्ति अर्थात् मलिन वृत्ति में सहज ही परिवर्तन आता है। कतक वृक्ष के फल के चूर्ण से गंदा पानी स्वच्छ बन जाता है-वैसे ही सम्यग्दर्शन के संग से आत्मा की मलिनवृत्ति स्वच्छ बनती है। कहा है-'भवे तनु: मोक्षे मनः' अर्थात् सम्यग्दृष्टि का शरीर संसार में और मन मोक्ष में होता
___जिज्ञासा होती है-सम्यग्दर्शन की आवश्यकता क्यों है? समाधान सहज व सरल है। हाथी को अंकुश की जरूरत होती है। घोड़े को लगाम से नियन्त्रण में रखा जाता है। मोटरकार के चालक को ब्रेक अच्छे रखने पड़ते हैं। ठीक इसी तरह आत्मा को संसार के परिभ्रमण से अंकुश में लाने के लिये सम्यग्दर्शन की आवश्यकता है।
सम्यग्दर्शन से मन की चंचलता दूर होती है। जिसके फलस्वरूप अनैतिक आचरण से विरक्ति होती है, उसकी तुच्छता प्रतीत होती है और व्यक्ति स्वत: नैतिक हो जाता है। उसकी इस मार्ग पर फिर तीव्रता से प्रगति होती है।
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