________________
३६०
जिनवाणी-विशेषाङ्क दुःखी न होना और सुख में न फूलना ही जीवन जीने की एक कला है। ___ * सम्यक्त्वी करुणाशील होता है। वह दूसरे को दुःखी देखकर उसकी सहायता करता है । वह पाप से डरता है, किन्तु पापी से घृणा नहीं करता। ___* गुणियों के प्रति वह अनुराग रखता है, प्रमोद भाव रखता है। गुणों का अनुमोदन करता है और उन्हें अपने जीवन में धारण करने का पुरुषार्थ करता है।
* वह प्रत्येक प्रवृत्ति यतना अथवा विवेकपूर्वक करने का लक्ष्य रखता है, उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है
जयं चरे जयं चिट्टे जयमासे जयं सए।
जयं भुंजतो भासंतो पावकम्मं न बंधई॥ सम्यक्त्वी (साधक) यतना पूर्वक चलता है, यतनापूर्वक खड़ा होता है। यतना पूर्वक बैठता है यतना पूर्वक सोता है, यतनापूर्वक खाता है, और यतनापूर्वक बोलता है तो पापकर्म का बंधन नहीं करता।
* एक किसान जिस प्रकार खेत में उगने वाली फसल में बाधक घास, कांटे आदि को उखाड़ फेंकता है उसी प्रकार सम्यक्त्वी मनुष्य निरीक्षण परीक्षण कर अपने आलस्य, प्रमाद, ईर्ष्या, द्वेष आदि दुर्गुणों को उखाड़ फेंकने का संकल्प करता है । ___ * सम्यक्त्वी निर्भीक होता है। उसे किसी प्रकार का भय नहीं होता। वह कायर नहीं होता है। __* कर्तव्यनिष्ठ सम्यक्त्वी अन्य के अधिकारों को सुरक्षित रखते हैं। वे किसी के अधिकार पर प्रहार नहीं करते हैं, अपने स्वार्थ हेतु किसी के हित को आघात नहीं पहुँचाते हैं। उनसे किसी को भय एवं अनिष्ट की आशंका नहीं होती।
इस प्रकार सम्यक्त्वी का जीवन के प्रति दृष्टिकोण नितान्त स्पष्ट होता है एवं जीवन को उसी ढंग से जीने के लिए प्रयासरत होता है। उसकी जीवन के आन्तरिक सौन्दर्य के प्रति रुचि होती है एवं वह वस्तुतः अपने जीवन को अपने व्यवहार द्वारा भी सुन्दर बना लेता है।
आत्म-परिणति
प्र उपाध्याय श्री पुष्कर मुनि •आत्मा की दृष्टि-शक्ति के सामने रागद्वेष का चश्मा जब तक चढ़ा रहता है तब तक बाह्य चश्मा होने पर भी आत्मा शुद्ध स्वरूप में पदार्थों का अवलोकन नहीं कर सकता।
मनुष्य की जैसी दृष्टि बन जाती है,वैसी ही उसे सारी सृष्टि नजर आने लगती है। | अनुकम्पा सम्यक्त्व की कसौटी है
जब तक बाह्य पदार्थों में सुख की कल्पना है, इन्द्रियों के विषयभोग सुख के साधन समझे जा रहे हैं,तब तक सुख की प्राप्ति होना सम्भव नहीं है। सम्यक्त्व के अभाव में न अन्तरचक्षु खुलते हैं और न सुख का रसास्वादन ही किया जा सकता है।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org