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________________ ३५६ जिनवाणी-विशेषाङ्क निःशंकता, निष्कांक्षा, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपवृंहण, स्थिरीकरण, वात्सल्य और प्रभावना ये आठ अंग हैं। इन आंठों अंगों का निरूपण निश्चय और व्यवहार दोनों दृष्टियों से किया गया है। निश्चय सम्यग् दर्शन का सम्बंध मुख्यतया आत्मा की अंतरंग शुद्धि या सत्य के प्रति दृढ श्रद्धा से है जबकि व्यवहार सम्यग् दर्शन का सम्बन्ध मुख्यतया देव, गुरु, धर्म, संघ, तत्त्व, शास्त्र आदि से है । परन्तु साधक में दोनों प्रकार के सम्यग् दर्शनों का होना आवश्यक है। सम्यग-दर्शन के आठ अंगों का निरूपण भी इन्हीं दोनों प्रकार के सम्यग् दर्शनों को लेकर किया गया है। जैसे एक दो अक्षर रहित अशुद्ध मंत्र विष की वेदना को नष्ट नहीं कर सकता वैसे ही अंगरहित सम्यग् दर्शन भी संसार की जन्म-मरण परम्परा का छेदन करने में समर्थ नहीं है। वस्तुतः ये आठों अंग सम्यक्त्व को विशुद्ध करते हैं। ये आठ अंग सम्यक्त्वाचार के आठ प्रकार हैं । वात्सल्य उनमें से एक प्रमुख अंग हैं। ___ 'वात्सल्य' शब्द वत्स से बना है जिसका अर्थ है-पत्र स्नेह, प्रेम या प्यार । अतएव वात्सल्य का तात्पर्य है पुत्रवत् स्नेह । यानी साधर्मिकों के प्रति हार्दिक एवं निःस्वार्थ अनुराग भाव से भक्तपान आदि आवश्यक वस्तुओं से उनकी सेवा करना वात्सल्य है। 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना वात्सल्य भाव में निहित है। वात्सल्य भाव का तात्पर्य वत्स के प्रति प्रेमभाव ही नहीं गुणियों के प्रति आदर-सत्कार एवं पुण्यभाव भी होता है। उच्चकोटि के सन्त-सती वर्ग के प्रति विशेष सम्मान भाव रखते हुए उसके शुद्ध आहार-पानी की गवेषणा में सहयोग करते हुए उन्हें प्रतिलाभ देना भी वत्सलभाव है। यह भाव जितना उच्चकोटि का होगा उतना ही कर्मबन्ध तोड़ने में सहायक होगा। चन्दनबाला ने प्रभु महावीर को उड़द के बाकले की भिक्षा दी थी, लेकिन वह आत्मिक उत्थान का कारण बना। नागश्री ने भी दान दिया था, लेकिन उसके मलिन भावों से उसे नरक के दुःख भोगने पड़े। अतएव वात्सल्य भाव चेतना का माधुर्य है। यह भाव राग के जहर को अमृत बना देता है। संखिया एक प्रकार का जहर होता है लेकिन अच्छे डाक्टर/वैद्य उसको साफकर दवा के रूप में परिणत कर व्यक्ति को जीवनदान भी दे देते हैं उसी प्रकार यह साधर्मी वात्सल्य भाव भी सम्यक्त्व के पुष्प को खिलाने में सहायक होता है। सामान्य रूप से वात्सल्य भाव का अर्थ अपने परिवार, जाति या कोम के प्रति प्रेम की भावना से लगाया जाता है। पाली के पालीवालों की वात्सल्य भावना जग जाहिर है। वहाँ कोई पालीवाल पाली में बसने के लिये आता तो सभी उसे एक ईंट और एक रुपया देते। जिससे उसका घर बन जाता था किसी को इधर-उधर हाथ नहीं पसारना पड़ता था। वात्सल्य का विशिष्ट अर्थ विशिष्ट अर्थ में सम्यग् दर्शन-ज्ञान-चारित्र रूप धर्म को धारण करने वाले साधु-साध्वी को कपट रहित सच्चे भाव से यथायोग्य विनय रूप प्रवर्तना, खड़े होना, सामने जाना, गुणग्राम करना, हाथ जोड़ना, आज्ञा धारण करना, पूजा-प्रार्थना करना, उन्हें ऊंचा आसन देकर स्वयं नीचे बैठना तथा जैसे गरीब को अचानक अर्थ लाभ हो वैसा For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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