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________________ वात्सल्य और अनुकम्पा __ श्रीमती सशीला बोहरा सम्यग्दर्शन के पांच लक्षणों में अनुकम्पा का तथा सम्यग्दर्शन के आठ अंगों में वात्सल्य का विशेष महत्त्व है। अनुकम्पा एवं वात्सल्य गुण सम्यग्दृष्टि को संवेदनशील, करुणावान एवं उदार सिद्ध करते हैं। उनकी अनुकम्पा एवं वात्सल्य का उत्स स्वयं आत्मा है। इन्हें विभाव नहीं स्वभाव स्वीकारना ही उचित होगा, क्योंकि ये दोनों किसी कर्म के परिणाम नहीं हैं। मोह को कर्म का परिणाम मानना उचित है, किन्तु अनुकम्पा एवं वात्सल्य तो संसारस्थ आत्मा की चेतना के अलंकार हैं। अतः इन दोनों पर लेखक के विचार प्रस्तुत हैं।-सम्पादक सम्यग्दर्शनगण के आस्वाद मात्र से जीवन व्यवहार में आमूलचूल परिवर्तन हो जाता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन-व्यवहार में सम, संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा और आस्था रूपी पांच लक्षण प्रगट हो जाते हैं। उसके उग्र कषायों का शमन हो जाता है, मोक्ष-प्राप्ति की इच्छा बलवती होने लगती है, संसार के प्रति उदासीनता, दुःखी जीवों के प्रति अनुकम्पा और जिनेन्द्र भगवान् के वचनों पर अटूट विश्वास हो जाता है। व्यवहार-सम्यक्त्व के इन पाँच लक्षणों में अनुकम्पा महत्त्वपूर्ण है। अनुकम्पा अनुकम्पा शब्द 'अनु' एवं 'कम्पा' से बना है। कम्पा 'कम्प्' धातु से बना है जिसका अर्थ है - कम्पन, सिहरन आदि । 'अनु' उपसर्ग है। अनुकम्पा का तात्पर्य हुआ दुःखी, दरिद्र, मलिन एवं ग्लान को देखकर कम्पित होना, द्रवित होना। आध्यात्मिक दृष्टि से इसका तात्पर्य है सांसारिक दावानल में फंसे जीव को देखकर द्रवित होना अथवा दूसरे के मलिन भावों एवं वृत्तियों को देखकर करुणित होना। ___करुणाशील व्यक्ति जब किसी की आंख में आंसू देखता है तो उसकी भी आंखें तर हो जाती हैं और वह उसकी आंखों के आंसू पोंछने में अपनी पूरी शक्ति लगा देता है। एक सहृदय कवि ने कहा है किसी की आँख तर देख तो अश्क आंखों से जारी हो, किसी की बेकरारी से मुझे भी बेकरारी हो, किसी की जान से बढ़कर न अपनी जान प्यारी हो, मेरी हस्ती का मरकज और मकसद इनकिरारी हो। सामान्य साधक भी जब इतना करुणामय हो सकता है तो सम्यग्दृष्टि तो होगा ही। प्रसिद्ध संत रंगदास के जीवन की घटना है कि जब वे बच्चे थे तो एक बार पिता ने उन्हें फल लाने के लिए कुछ पैसे दिये । रंगदास बाजार में गये। वहां उन्होंने भूख से छटपटाते परिवार को देखा। रंगदास ने वे पैसे उन्हें दे दिये । परिवार के सदस्यों ने इन पैसों से खाने का सामान खरीदा और खाकर बड़े प्रसन्न हुए। रंगदास खाली हाथ घर लौट कर आये। पिता ने पूछा 'बेटा ! फल नहीं लाये?' 'पिताजी, मैं आपके लिये अमरफल लाया हूँ'-रंगदास बोले । * परियोजना निदेशक जिला महिला विकास अभिकरण,जोधपुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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