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________________ पर्यावरण-संरक्षण में सम्यक्त्व की भूमिका * सूरजमल जैन पर्यावरण- प्रदूषण विश्व की एक प्रमुख समस्या है। लेखक ने जैन धर्म-दर्शन के आधार पर इस समस्या के निवारण पर गम्भीरता से विचार किया है तथा सम्यग्दर्शन को व्यापक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया है । - सम्पादक पर्यावरण व्याख्या पर्यावरण में चराचर जगत् के सभी घटक, अवयव, वायु, भूमि, जल, वनस्पति, छोटे-बड़े जीव एवं अजीव समाविष्ट किये जाते हैं। इन सभी का संकुल ही पर्यावरण है । इस संकुल के सभी घटक परस्पर उपयोगी एवं अन्योन्याश्रित हैं । इसकी तुलना किसी मशीन से की जाती है, जिसका प्रत्येक पुर्जा महत्त्वपूर्ण है और सम्पूर्ण मशीन के कार्य-संपादन के लिए आवश्यक है पूरी मशीन के कार्य से ही उसका अस्तित्व जुड़ा है । पर्यावरण की व्याख्या में मानव शरीर का भी उदाहरण ले सकते हैं, जिसमें कुछ खरब कोशिकाएं हैं और प्रत्येक कोशिका समस्त कोशिकाओं के लिए कार्य करती है और समस्त कोशिकाएँ प्रत्येक के लिये । एक सबके लिये और सब एक के लिये, यही पर्यावरण-संरक्षण का मूलभूत सिद्धांत है । पर्यावरण के किसी भी एक घटक की विकृति सम्पूर्ण पर्यावरण की विकृति एवं विनाश का कारण बन सकती है । पर्यावरण प्रदूषण मनुष्य भी पर्यावरण का एक घटक है और बुद्धि-बल के कारण सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। उसके विकृत क्रिया-कलापों के कारण ही पर्यावरण प्रदूषण निरन्तर बढ़ रहा है | वायु, जल एवं भूमि जो जीवन के प्रमुख आधार हैं इतने अधिक प्रदूषित हो गये हैं कि प्रकृति में अन्तर्निहित स्व-शुद्धिकरण एवं नवीनीकरण (Self purification and rejuvenation) व्यवस्था पर्याप्त नहीं है और इनके शुद्धिकरण के लिये अपार धनराशि आवश्यक है। प्रत्येक व्यक्ति के अन्तरंग मनोभाव उसके निजी एवं सामाजिक क्रिया-कलापों को प्रभावित करते हैं और अन्ततोगत्वा भौतिक पर्यावरण की विकृति के उत्तरदायी हैं । एक शीर्ष शासनाध्यक्ष के अन्तरंग मनोभावों की विकृति अणुयुद्ध का कारण हो सकती है और सर्वनाश कर सकती है। सम्यक्त्व यदि प्रत्येक व्यक्ति अपने आपको वृहत् समाज का घटक समझकर, लोक में अवस्थित विभिन्न पदार्थों, तत्त्वों की यथास्थिति और परस्पर कार्य-कारण व्यवस्था को यथार्थ रूप से हृदयंगम करके, विवेकपूर्ण आचरण करे तो सभी प्रकार की सामाजिक बुराइयां एवं पर्यावरण- प्रदूषण समाप्त हो सकता है। इसी यथार्थ रूप को जानकर विवेकपूर्ण आचरण करना 'सम्यक्त्व' का कार्य है और यही मोक्ष का मार्ग है, जैसा कि उमास्वाति कृत तत्त्वार्थ सूत्र में कहा हैसम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः । तत्त्वार्थ श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् ॥ - तत्त्वार्थसूत्र १.१-२ * वानिकी सलाहकार एवं पूर्व अधिकारी, वन-विभाग, राजस्थान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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