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जिनवाणी- विशेषाङ्क
(५)
सम्यक्त्व : एक दिव्य दृष्टि
(प्रवचन से चयनित वचन)
सम्यग्दर्शन अभी प्राप्त नहीं हुआ है, अन्यथा क्या मजाल कि स्थानक में सामायिक में, व्रत में, पौषध में आप बैठे हों और मन घर जाने को करे । यह मोह एवं मिथ्यात्व की दशा है । बिना श्रद्धा या बिना विश्वास यह दशा टूटने वाली नहीं है ।
•सम्यग्दर्शनी का व्यवहार सम्यग्दर्शन के पश्चात् शुद्ध-निर्मल नहीं रहा तो जो रत्न मिला था वह भी चला जायेगा ।
धर्मकार्य को बाद में करने के लिए टालते रहना सम्यग्दर्शनी को शोभा नहीं देता ।
• सम्यग्दर्शन एक दिव्यदृष्टि है जो अंधकार से प्रकाश में लाती है ।
• मिथ्यात्वी जहां गुणीजनों में बैठकर भी अवगुण ही तलाशता है वहां सम्यक्त्वी जीव अवगुणधारियों में बैठकर भी गुण को चुन लेता है । उसकी दृष्टि गुण - ग्राहक होती है ।
कहा जाता है कि व्यवहार समकित की आराधना करते हुए भी जीव मिथ्यात्वी होता है । यह कथन सत्य के निकट है, पर इस कथन को लेकर यह मानना कि हमें व्यवहार समकित की आराधना - साधना ही नहीं करनी चाहिए, उचित नहीं है । मिथ्यात्वी भी वीतराग को देव, निर्ग्रन्थ को गुरु और दया में धर्म समझे और पुरुषार्थ करे तो वह समकित को वस्तुतः प्राप्त कर सकता है । मिथ्यात्व की गांठ आज ढीली पडेगी तो कल वह गलेगी और अन्त में जीव के द्वारा तोड़ दी जायेगी ।
• दृष्टि के अन्तर का ही सारा खेल है । दृष्टि संसार के काम-भोगों में उलझी तो घोर अंधेरा है और तत्त्व श्रद्धान एवं तत्त्व निश्चय की ओर चली गई तो प्रकाश ही प्रकाश है ।
सम्यग्दर्शन होने के पश्चात् विषय भोग गंदगी के रूप में त्याज्य प्रतीत होते हैं । क्रोधादि भी त्याज्य प्रतीत होते हैं ।
जैसी अन्तः दृष्टि होती है वैसी ही बाह्य सृष्टि प्रतीत होती है । सम्यक्त्व दर्पण है जिसमें अपनी आत्मा का दर्शन किया जा सकता है ।
सम्यक्त्वी का प्रत्येक विचार, प्रत्येक आचार कर्मबंध को हटाने के लिए, आस्रव को मिटाने के लिए और मुक्ति की प्राप्ति के लिए होता है ।
• चिड़ी कांच पर बैठती है और स्वयं को देखती है। उसे कांच में अपना प्रतिरूप दिखता है, उसे वह अपना स्वजाति पक्षी समझकर लड़ने लगती है और चोंच मार-मारकर खुद की चोंच को घायल कर डालती है। यही दशा मिथ्यात्वियों की है । वे पुगलों में ही अपना जीवन मानकर उन्हीं में रमते हैं और इस प्रकार अज्ञान में अपनी आत्मा को आहत कर लेते हैं।
आत्मा का वास्तविक घर मोक्ष है । उसकी प्राप्ति तत्त्वश्रद्धान रूप सम्यग्दर्शन से संभव है।
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