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________________ ३०२ जिनवाणी-विशेषाङ्क सुरक्षा के अपने प्रमुख लक्ष्य से भटक जाती है व समाज में एक प्रकार से ‘शक्ति ही कानन है' का जंगल राज स्थापित हो जाता है। दूसरी ओर सहायता व नियंत्रण पर आधारित अर्थव्यवस्था यानी साम्यवादी व समाजवादी अर्थव्यवस्था में जहां पीड़ित का परोपकार पहले विकास के सभी को समान अवसर. क्षमतानसार सार्वजनिक कल्याण के कार्यों में सहयोग, हर एक का सामाजिक दायित्व जैसे विचारों को व्यावहारिक रूप दिये जाने की कोशिश की जाती है, वहीं अकर्मण्यता, आलस्य व अक्षमता की प्रवृत्तियां बढ़ती हैं। सत्ता के दुरुपयोग की सम्भावनाएं व्यापक हो जाती हैं तथा सरकार के माध्यम से अर्थशक्ति कुछ ही हाथों में सिमट कर रह जाती है। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि क्या इन दोनों के बीच का रास्ता अपनाया जाय, जिसे तकनीकी रूप से मिश्रित अर्थव्यवस्था का नाम भी दिया जाता है। सम्पूर्ण संसार में गरीबी, भूखमरी, उत्पीड़न, शोषण, असमानता, बेरोजगारी जैसी आर्थिक हिंसा, चोरी, बलात्कार, नशा, फरेब, वेश्यावृत्ति, बाल श्रमिक जैसी सामाजिक व अस्थिरता, एकाधिकार, सत्तालोलुपता जैसी राजनैतिक समस्याओं के बढ़ते जाने का महत्त्वपूर्ण कारण विचारधारा को व्यावहारिकता पर वरीयता न दिया जाना है। क्योंकि किसी भी अर्थव्यवस्था का मूलाधार आम जनता के आर्थिक सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक राजनैतिक आदि सभी क्षेत्रों के हितों का अधिकतम संरक्षण व संवर्द्धन करना होना चाहिये। ___ एक विचारधारा विशेष पर आधारित अर्थव्यवस्था का ढांचा तो माध्यम मात्र है, अंतिम लक्ष्य तो जन-कल्याण ही है। जिसका सीधा मतलब गरीबी-उन्मूलन, साक्षरता-विस्तार, आर्थिक व सामाजिक असमानता में कमी, रोजगार व व्यवसाय के अवसरों की समानता, नशीले पदार्थों से परहेज, विकास दर में वृद्धि, सुविधाओं व सेवाओं का विस्तार, रोजगार के अवसरों का फैलाव और अधिकतम उपभोग है। यहां पुनः प्रश्न उठता है कि क्या अर्थव्यवस्था के संदर्भ में यह ही वास्तविक दृष्टिकोण है? यानी यह सब कुछ प्राप्त कर लेने को ही लक्ष्य की प्राप्ति मान लिया जाए? ऊपरी तौर पर सामान्यतया ऐसा ही मान लिया जाता है, लेकिन विश्वव्यापी स्तर पर परिस्थितियों का गहराई से अध्ययन किया जाए तो यह निष्कर्ष भ्रम सिद्ध होता है। उदाहरणार्थ, पूंजीवादी सिद्धान्तों को अपनाकर अमरीका विश्व का सर्वाधिक विकसित व धनी राष्ट्र का स्थान तो बना चुका है, लेकिन वहां का आम नागरिक सर्वाधिक संतुष्ट व सुखी है, ऐसा मानना उपयुक्त नहीं है। वास्तव में वह एक ऐसा बदनसीब देश है जहां हत्या, आत्महत्या, बलात्कार, डकैती और अपहरण आम बात है। वहां लाखों की संख्या में कुंवारी माताएं, बालिका वेश्याएं, पति पीड़िताएं, अविवाहित जोड़े, माता-पिता विहीन मासूम बच्चे विकास को कोस रहे हैं। आय का अधिकांश भाग सिगरेट, शराब व अन्य नशीले पदार्थों पर खर्च किया जा रहा है। पैसे की चकाचौंध ने परिवार, समाज व मानवीय सम्बन्धों के अर्थ को पूरी तरह से विकृत कर दिया है। फिजूलखर्ची का आलम यह है कि संसार के एक चौथाई पैट्रोलियम पदार्थ अकेले अमेरिका में खर्च हो जाते हैं, एक तिहाई क्रय उधार पर आधारित होता है, राष्ट्रीय बजट घाटा खरबों डालर प्रति वर्ष का है। अनुत्पादक सामरिक, प्रशासनिक व दिखावे के व्यय बजट १, बहुत बड़ा हिस्सा निगल जाते हैं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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