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जिनवाणी- विशेषाङ्क
यदि दर्शन अर्थात् श्रद्धा अथवा विश्वास विशुद्ध हो जाय, जड़ के विनश्वर और आत्मा के अविनाशी स्वरूप पर विश्वास हो जाय तो फिर आपको किसी प्रकार आकुल-व्याकुल होने का प्रसंग ही नहीं आवेगा। हां, हमें यह विश्वास होना चाहिये कि हमारे भीतर शान्ति का अथाह सागर हिलोरें ले रहा है। आत्मा के सही स्वरूप को समझ लिया जाय, पुद्गलों के उत्पाद, व्यय और धौव्य इन तीनों रूपों को सही रूप में समझ लिया जाय, जड़ और चेतन के भेद - विज्ञान द्वारा सही रूप में यह समझ लिया जाय कि संसार के जितने दृश्यमान पदार्थ हैं, वे टिकने वाले नहीं है । यह सुनिश्चित रूप से समझ लिया जाय कि जिसका संयोग हुआ है, उसका वियोग सुनिश्चित है; जो उत्पन्न हुआ है, उसका विनाश सुनिश्चित है; जो बनता है वह एक दिन अवश्य बिगड़ता है । ये इमारतें बनी हैं, कोठियाँ बनी हैं, बंगले बने हैं, किले बने हैं, वे सब कभी न कभी नष्ट होंगे, यह अवश्यंभावी है। यह वस्तु-स्वभाव है। बना हुआ बिगड़े नहीं, मिला हुआ जावे नहीं और जन्मा हुआ मरे नहीं, ऐसा न कभी हुआ और न कभी होगा ही ।
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हर घर मरघट
बौद्धजातक में एक कथा आती है। एक बुढ़िया का बच्चा मर गया । वह उसका इकलौता पुत्र बड़ी मनौतियों के पश्चात् हुआ था। इसलिये वह उसे प्राणों से भी अत्यधिक प्यारा था। एक दिन वह बीमार हुआ और अकस्मात् ही चल बसा। पर बुढ़िया को विश्वास नहीं हुआ कि वह मर गया है। उसने यही समझा कि वह बच्चा मरा नहीं, जीवित है । वह वैद्यों-हकीमों के पास जाती और कहती - 'देखो मेरे बच्चे को ठीक कर दो।' वैद्य-हकीम उसे देखते ही समझ जाते कि वह मर गया है । वे बुढ़िया से कहते- 'तेरा बच्चा मर गया है।' बुढ़िया उनकी बात न मानकर कहती -'अरे ! तुम लोग कैसे वैद्य हकीम हो ? मेरा बच्चा चार दिन से बीमार है और तुमसे अच्छा नहीं होता ।'
अन्त में वह बुढ़िया एक वृद्ध वैद्य के पास गई । वैद्य कुछ दिन पहले मरे हुए उस बच्चे को देख कर समझ गया कि बुढ़िया की उस बच्चे पर अत्यधिक आसक्ति है, वह बच्चे के मरने की बात कहेगा तो बुढ़िया उसकी बात पर किसी भी तरह विश्वास नहीं करेगी, अतः उसने उसे ऐसी जगह भेजने का निश्चय किया जहां उस बच्चे के मरने की बात पर विश्वास हो सके ।
उधर बुद्ध तपस्या करते हुए घूम रहे थे। उस बूढ़े वैद्य ने उस बुढ़िया से कहा-'अगर तुम अपने बच्चे को ठीक करना चाहती हो तो उस बाबा के पास चली जाओ । वह तन्त्र-मन्त्र-टोना करके तुम्हारे बच्चे को ठीक कर देगा ।'
वृद्ध वैद्य की बात सुनकर बुढ़िया अपने मृत बच्चे को लिये बुद्ध के पास गई और उसने बुद्ध से कहा - 'महात्मन् ! कृपा कर मेरे इस बच्चे को ठीक कर दीजिये ।'
बुद्ध मृत बच्चे को देखते ही सारी स्थिति ताड़ गये । उन्होंने यह भी समझ लिया कि यदि उसे सीधे तौर पर बच्चे के मरने की बात कही तो बुढ़िया उस पर विश्वास नहीं करेगी । अतः बुद्ध ने बुढ़िया से कहा- -'तुम्हारे बच्चे को ठीक कर सकता हूं, यदि
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