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जिनवाणी-विशेषाङ्क
ठहरता है वैसे ही धर्म का भवन भी श्रद्धा, विश्वास अथवा दर्शन की नींव पर ठहरता है। जिस प्रकार बिना नींव का मकान किसी भी क्षण ढह सकने के कारण निरर्थक है, व्यर्थ है, ठीक उसी प्रकार बिना श्रद्धा के धर्म का महल क्षणविध्वंसी है, अस्थिर है। मकान के लिये जैसे नींव को मजबूत बनाना चाहिये, उसी तरह चारित्र-धर्म के महल की नींव को मजबूत रखने के लिये भी ठोस भूमिका चाहिये। तो चारित्र के महल को मजबूत बनाने के लिए दर्शन पहली भूमिका है, नींव या पाया है।
भगवान् महावीर ने उत्तराध्ययनसूत्र के २८वें अध्ययन में इसी तथ्य को इस प्रकार कहा है
नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हंति चरणगुणा।
अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निव्वाणं ॥३०॥ पहली बात कही गई कि
'नादंसणिस्स नाणं' मुमुक्षुओं ! याद रखिए, जब तक सम्यग्दर्शन नहीं होगा, तब तक ज्ञान (सम्यग्ज्ञान) नहीं होगा। सम्यक् विश्वास की कमी
आप में से बहुतेरे भाई पुण्य-पाप, आश्रव-संवर, बंध-मोक्ष, और जीव-अजीव को जानने वाले मिलेंगे। आपको यह मालूम होगा कि जो सुख मिलता है, वह पुण्य का फल है। यह भी मालूम होगा कि पाप करने से दुःख मिलता है। एक व्यक्ति को अपने अड़ोस-पड़ौस में, कुटुम्ब-परिवार में, गांव-परगांव में अपने सुख के बीच में किसी का बाधक व्यवहार देखकर रोष आ गया। वह सोचने लगा कि मेरे सुख को इसने नष्ट कर दिया। मेरी कमाई को इसने बिगाड़ दिया, मेरे धन्धे-रोजगार को उसने ठप्प कर दिया। मेरे आसामी को इसने बहका दिया। मेरे ग्राहक को यह तोड़ ले गया। इसी तरह कुछ माताएं भी सोचती हैं। अपने किसी पड़ौसी स्त्री-पुरुष के बारे में गलत धारणा बन जाती है। ऐसे वक्त घर में कभी बच्चा बीमार हो गया, संयोग से उस पड़ौसी स्त्री-पुरुष से झगड़ा हो गया और संयोगवश बच्चे की तबियत अधिक बिगड़ने से वह अचानक चल बसा तो माताएं सोचने लगती हैं कि बच्चे पर उसने कुछ कर दिया अथवा वह डाकिनी बच्चे को खा गई। ऐसा सोचने वाली बहिनें मिलेंगी । अगर किसी बहिन को शक हो गया कि किसी ने उसके बच्चे पर ऐसा कर दिया है तो वह इधर-उधर जावेगी, भैरूं-भोपाजी के यहां जावेगी। वहां से तसल्ली एवं ढाढस प्राप्त करने का प्रयास करेगी।
एक ओर तो वीतराग प्रभु की वाणी का श्रवण करते समय उसने सन्त-सतियों के मुख से अनेक बार सुना है कि प्रत्येक प्राणी को अपने कर्मानुसार ही सुख-दुःख मिलते हैं। सदा उसने गुरु-मुख से तो यही सुना है कि जब तक जिस जीव की आयु पूरी नहीं होती तब तक उसको कोई भी हटाने वाला, ले जाने वाला अथवा मारने वाला नहीं है, फिर दूसरी तरफ भैरू के जाना, भोपा के यहां जाना—यह सब कुछ क्या किया जा रहा है? बच्चे का सुख, घर वालों का सुख, शरीर का सुख अथवा धन का सुख-ये सब सुख किससे मिलते हैं? पुण्य से। और दुःख किससे मिलता है ? पाप
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