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________________ जिनवाणी- विशेषाङ्क सम्यग्दर्शन 'दर्शनगुण' की पर्याय है । स्वभाव व विभाव रूप उसकी दो अवस्थाएं ही सम्यक्त्व और मिथ्यात्व हैं । गुण की स्वाभाविक अवस्था को भी गुण कह देते हैं। जैसे सिद्धों के आठ गुणों में प्रथम गुण सम्यक्त्व कहा है । सम्यग्दर्शन एक अद्भुत गुण है । जिस वस्तु का जो स्वभाव है, उस वस्तु का उस स्वभावसहित विपरीताभिनिवेश रहित श्रद्धान करना सम्यग्दर्शन है । निःशंकित आदि आठ गुणों से युक्त सम्यग्दर्शन समकितवान् जीव को एक अभूतपूर्व व्यक्तित्व प्रदान करता है । ऐसा अतिदुर्लभ सम्यग्दर्शन जिन्हें उपलब्ध है, वे प्रणम्य हैं । E-३४, पार्श्वनाथ जैन मन्दिर, शास्त्रीनगर, जोधपुर सम्यक्त्व : इन्द्रियादि मार्गणाओं में १९० इन्द्रियों की अपेक्षा पंचेन्द्रिय संज्ञी जीवों के औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीनों सम्यग्दर्शन होते हैं । एकेन्द्रिय से लेकर चतुरिन्द्रिय जीवों एवं असंज्ञी पंचेन्द्रिय के कोई सम्यग्दर्शन नहीं होता । काय की अपेक्षा त्रसकायिकों के तीनों सम्यग्दर्शन होते हैं और स्थावरकायिकों के एक भी सम्यग्दर्शन नहीं होता । योग की अपेक्षा तीनों योग वाले के तीनों सम्यग्दर्शन होते हैं, अयोगियों के मात्र क्षायिक सम्यग्दर्शन होता है । वेद की अपेक्षा तीनों वेदों में तीनों ही सम्यग्दर्शन होते हैं किन्तु अवेद अवस्था में औपशमिक और क्षायिक ये दो सम्यग्दर्शन होते हैं । कषायों की अपेक्षा चारों कषायों में तीनों ही सम्यग्दर्शन होते हैं, किन्तु अकषाय अवस्था में औपशमिक और क्षायिक ये दो सम्यग्दर्शन होते हैं । ज्ञान की अपेक्षा मति, श्रुत, अवधि एवं मनः पर्यायज्ञानियों के तीनों ही सम्यग्दर्शन होते हैं, केवलज्ञानी के मात्र क्षायिक सम्यग्दर्शन होता है । संयम की अपेक्षा सामायिक और छेदोपस्थापना संयम में तीनों ही सम्यक्त्व होते हैं । परिहारविशुद्धि संयम में क्षायिक और क्षायोपशमिक ये दो सम्यग्दर्शन होते हैं । सूक्ष्मसंपराय और यथाख्यात संयम में औपशमिक और क्षायिक ये दो सम्यग्दर्शन होते हैं। संयतासंयत और असंयतों के तीनों ही सम्यग्दर्शन होते हैं । दर्शन की अपेक्षा चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन में तीनों सम्यग्दर्शन होते हैं । केवलदर्शन में मात्र क्षायिक सम्यग्दर्शन होता है । लेश्या की अपेक्षा छहों लेश्याओं में तीनों ही सम्यग्दर्शन होते हैं, और अलेश्यी अवस्था में मात्र क्षायिक सम्यग्दर्शन होता है । भव्यत्व की अपेक्षा भव्यों के तीनों ही सम्यक्त्व हो सकते हैं किन्तु अभव्यों के कोई भी सम्यग्दर्शन नहीं होता है । Jain Education International For Personal & Private Use Only - सर्वार्थसिद्धि के आधार पर www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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