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जिनवाणी-विशेषाङ्क २८. प्रश्न-सम्यक्त्व आ कर चली गयी हो तो जीव कितने काल में मोक्ष प्राप्त करता है? उत्तर-जिस जीव ने एक बार सम्यक्त्व का स्पर्श कर लिया हो वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त एवं उत्कृष्ट अर्द्ध पुद्गल परावर्तन में अवश्य मुक्त हो जाता है। २९. प्रश्न-अमुक मनुष्य सम्यक्त्वी है या नहीं यह कैसे जाना जा सकता है? उत्तर-सम्यक्त्व आत्मा का गुण होने से अरूपी है इसे ज्ञानी ही जान सकते हैं, परन्तु जिसमें सम्यक्त्व के पाँच लक्षण देखने में आते हैं उसे अनुमान से सम्यक्त्वी कहा जा सकता है। ३०. प्रश्न-सम्यक्त्व की प्राप्ति से जीव को क्या लाभ है?
उत्तर-सम्यक्त्व गुण जन्म-मरण का नाश कर मोक्ष का अनंत सुख प्राप्त करने में बीजरूप है। सम्यक्त्व से जीव संसार-समुद्र से तिर कर मोक्ष के अव्याबाध सुखों को प्राप्त करने में समर्थ होता है। अतः सम्यक्त्व जीव के लिए कल्याणकारी है।
___-सम्यग्दर्शन कार्यालय, नेहरू पार्क ब्यावर (राज.) समझो चेतनजी अपना रूप
र आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा.
समझो चेतनजी अपना रूप, यो अवसर मत हारो ॥टेर ॥ ज्ञान दरस-मय, रूप तिहारो, अस्थि-मांसमय, देह न थारो। दूरकरो अज्ञान, होवे घट उजियारो ||समझो ॥१॥ पोपट ज्यं पिंजर बंधायो, मोह कर्म वश स्वांग बनायो। रूपधरे है अनपार, अब तो करो किनारो ।।समझो ॥२॥ तन धन के नहीं तुम हो स्वामी, ये सब पुद्गल पिंड है नामी। सत् चित गुण भण्डार, तूं जग देखन हारो ॥समझो ॥३ ।। भटकत-भटकत नरतन पायो, पुण्य उदय सब योग सवायो। ज्ञान की ज्योति जगाय, भ्रम तम दूर निवारो।समझो॥४॥ पुण्य-पाप का तूं है कर्ता, सुख-दुःख फल का भी तूं भोक्ता। तूं ही छेदनहार, ज्ञान से तत्त्व विचारो ।समझो॥५॥ कर्म काट कर मुक्ति मिलावे, चेतन निज पदको तब पावे। मुक्ति के मार्ग चार, जानकर दिल में धारो ॥समझो ॥६॥ सागर में जलधार समावे, त्यूं शिवपद में ज्योति मिलावे। होवे 'गज' उद्धार, अचल है निज अधिकारो॥समझो ॥७॥
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