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________________ सम्यक्त्व - प्रश्नोत्तर * Xxx पारसमल चण्डालिया १. प्रश्न - सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर -सुदेव, सुगुरु और सुधर्म पर तथा जीव आदि नव तत्त्वों पर यथार्थ श्रद्धा रखना सम्यक् है । २. प्रश्न - सुदेव किसे कहते हैं ? उत्तरर- जो राग-द्वेष से रहित हैं, अठारह दोष रहित और बारह गुण सहित हैं सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं, जिनकी कथनी और करनी में भेद नहीं है, जिनकी वाणी में जीवों का एकान्त हित है वे ही परम आराध्य परमेश्वर सुदेव कहलाते हैं । ऐसे सुदेव कर्म रूप भाव शत्रुओं का नाश करने वाले होने से 'अरिहन्त' कहलाते हैं ३. प्रश्न - सुगुरु किसे कहते हैं ? अथवा सुगुरु कौन है ? I उत्तर - जो हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह का सर्वथा प्रकार से त्याग कर तीन करण, तीन योग से पांच महाव्रत, पांच समिति और तीन गुप्ति का पालन करते हैं, जो २७ गुणों के धारक हैं वे सुगुरु हैं । सुगुरु स्वयं संसार सागर से तिरते हैं और दूसरों को भी संसार - सागर से तिराते हैं । ४. प्रश्न - सुधर्म किसे कहते हैं ? उत्तर- अर्हन्त देव द्वारा जीवों के शाश्वत सुख के उद्देश्य से बतायी हुई अहिंसा - प्रधान साधना धर्म है। जो आत्मा को अशुभ गतियों से बचा कर मोक्ष में ले जाता है वह सुधर्म है। Jain Education International ५. प्रश्न -- तत्त्व कितने हैं ? उत्तर - तत्त्व नौ हैं - १. जीव २. अजीव ३. पुण्य ४. पाप ५. आस्रव ६. संवर ७. निर्जरा ८. बंध और ९. मोक्ष । इन नव तत्त्वों पर श्रद्धा रखना ही सम्यक्त्व है । ६. प्रश्न- सम्यक्त्व के कितने भेद हैं ? उत्तर - सम्यक्त्व के दो भेद हैं- १. व्यवहार सम्यक्त्व और २. निश्चय सम्यक्त्व । ७. प्रश्न- व्यवहार सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर - सुदेव, सुगुरु, सुधर्म एवं जिनागमों पर श्रद्धा करना व्यवहार सम्यक्त्व है । ८. प्रश्न - निश्चय सम्यक्त्व किसे कहते हैं ? उत्तर - देव, आत्मा, गुरु, ज्ञान, धर्म, चैतन्य इनमें निःशंक एवं अडिग श्रद्धा होना निश्चय सम्यक्त्व है । वस्तुतः निज आत्मा ही देव, गुरु और धर्म है । ९. प्रश्न- सम्यक्त्व कैसे जाना जाता है ? * सह सम्पादक, सम्यग्दर्शन पत्रिका, ब्यावर For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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