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जिनवाणी-विशेषाङ्क अवश्य मोक्ष जाता है। १५ भवों में ८ भव मनुष्य के (वर्तमान-भव सहित) एवं ७ भव वैमानिक के होते हैं। जिज्ञासा -८३–एक सम्यक्त्व की प्राप्ति एक भव एवं अनेक भव के जघन्य एवं उत्कृष्ट आश्रित कितनी बार हो सकती है? समाधान - क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति एक ही बार होती है। अबद्धायु हो तो नियम से उसी भव में मनुष्य मोक्ष जाता है। यदि बद्धायु हो तो उत्कृष्ट लगातार चार भव कर सकता है। (जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है) यह सम्यक्त्व सिद्धों में भी पायी जाती है।
क्षयोपशम सम्यक्त्व एक भव में जघन्य एक बार एवं उत्कृष्ट प्रत्येक हजार बार और अनेक भवों की अपेक्षा जघन्य दो बार एवं उत्कृष्ट असंख्य बार आ सकती है।
उपशम एवं सास्वादन सम्यक्त्व एक भव में जघन्य एक बार एवं उत्कृष्ट दो बार तथा अनेक भवों की अपेक्षा जघन्य दो बार एवं उत्कृष्ट पांच बार आ सकती है।
वेदक सम्यक्त्व तीन प्रकार का है-१. उपशम २ क्षयोपशम एवं ३ क्षायिक । उपशम वेदक एवं क्षयोपशक वेदक सम्यक्त्व का कथन क्रमश: उपशम एवं क्षयोपशम सम्यक्त्व के समान है। क्षायिक वेदक सम्यक्त्व की प्राप्ति क्षायिक सम्यक्त्व की प्राप्ति के पूर्व समय में एक ही बार होती है। अनेक भवों की इसमें अपेक्षा नहीं होती
गुरु-स्वरूप गरेइ मोक्खमग्गं जो, समिओ गुत्तिधारओ ।
खंत्तो दंतो निरारंभो , सो गुरू परिकित्तिओ ॥१॥ जो पांच समितिओं के पालक एवं त्रिगप्ति के धारक होते हैं, क्षान्त क्षमाशील होते है, दान्त–जितेन्द्रिय होते हैं, निरारम्भ-आरंभ से रहित होते हैं, मोक्ष-मार्ग के उपदेशक होते हैं, वे ही गुरु कहलाते हैं।
धम्मण्णू धम्मकत्ता य, सया धम्मपरायणो ।
भव्वाणं धम्मसत्थत्थ-देसगो वुच्चई गुरू ॥२॥ जो धर्म के ज्ञाता होते हैं, धर्ममय अपना जीवन बनाते हैं, धर्मसेवन में सदा परायण रहते हैं और भव्यजीवों के लिये धर्मशास्त्र के अर्थ का उपदेश देते हैं, वे ही गुरु कहलाते हैं। . सत्तभय-विहूणो य, अट्ठमयविवज्जिओ ।
नवबंभजुओ संतो, दस-धम्मपरायणो ॥३॥ जो सात प्रकार के भय से सर्वथा रहित होते हैं, आठ प्रकार के मद से जो रहित होते हैं, नौ बाड़ से जो ब्रह्मचर्य को पालते हैं, शान्तस्वभाव के धारक होते हैं और दश प्रकार के श्रमण धर्मों के आराधन में जो तत्पर रहते हैं, वे ही सद्गुरु हैं।
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