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________________ सम्यग्दर्शन : शास्त्रीय-विवेचन १८१ गुणस्थान तक के आराधक जीव १५ भव में निश्चित मोक्ष जाएंगे ही। विशेषावश्यक भाष्य के अनुसार उपशम श्रेणि में काल करने वाला जीव तीसरे भव में मोक्ष जाता है, ये विस्तृत विवेचन शास्त्र व ग्रन्थों के विभिन्न स्थलों पर वर्णित हैं, जिज्ञासु के लिए ये सभी वर्णन उपयोगी हैं, सामान्य जानकारी स्तोक में वर्णित है। जिज्ञासा ८०-अप्रतिपाति सिद्ध किसे समझना? क्या उपशम समकित प्राप्त कर नीचे गिरे बिना सिद्ध हो सकते हैं? समाधान-जो जीव एक बार समकित प्राप्त कर मिथ्यात्व में गिरे बिना सिद्ध होता है उसे अप्रतिपाति सिद्ध कहते हैं। जिज्ञासा ७५ में तीनों मान्यताओं का उल्लेख किया जा चुका है। कार्मग्रन्थिक व सैद्धान्तिक मान्यता के अनुसार बिना गिरे भी सिद्ध होते जिज्ञासा ८१-क्या उपशम समकित वाला जीव उपशम-श्रेणि करके पुनः क्षयोपशम, या क्षायिक समकित प्राप्त कर सकता है ? यदि कर सकता है तो कौनसे गुणस्थान में करता है? चौथे तक आना जरूरी है या नहीं? समाधान-उपशम श्रेणि करने वाले जीव के उस भव में पुनः क्षयोपशम अथवा क्षायिक समकित प्राप्त करने में कोई बाधा ध्यान में नहीं आती। प्रायः क्षयोपशम समकित प्राप्त होती है, क्योंकि उपशम की स्थिति अन्तर्मुहूर्त से अधिक की नहीं है। अबद्धायु उस भव में क्षायिक समकित प्राप्त नहीं कर सकता, क्योंकि अबद्धायु होने से उसके उसी भव में क्षपक श्रेणि आरोहण की नियमा हो जाएगी और सैद्धान्तिक पान्यता में एक भव में दोनों श्रेणि का निषेध किया गया है। __ पूर्वबद्धाय जीव के उपशम श्रेणि से गिरकर क्षायिक समकित प्राप्त करने में कोई बाधा ध्यान में नहीं आती। समकित का परिवर्तन चौथे से सातवें गुणस्थान तक ही संभव है, अथवा मिथ्यात्व में गिरकर पुनः अभ्युदय भी हो सकता है। श्रेणि में काल करने वाला जीव तो सीधे चौथे गुणस्थान में चला जाता है, और श्रेणि से पतित होने वाला जीव उतरते-उतरते सातवें या छठे गुणस्थान में ठहरता है और यदि वहां भी अपने को संभाल नहीं पाता है तो पांचवें और चौथे गुणस्थान में पहुंचता है। यदि अनंतानुबंधी का उदय आ जाता है तो सासादन सम्यग्दृष्टि होकर पुनः मिथ्यात्व में पहुंच जाता है। जिज्ञासा-८२-किस सम्यक्त्व का धारी जीव कितने भवों में मोक्ष में जाता है ? समाधान - क्षायिक सम्यक्त्वी मनुष्य यदि बद्धायु नहीं हो तो उसी भव में मोक्ष जाता ही है, किन्तु यदि वह नारकी-देवायु का बद्धायु हो तो तीसरे भव में और यदि युगलिक मनुष्य एवं युगलिक तिर्यञ्च का बद्धायु हो तो चौथे भव में वर्तमान भव सहित) मोक्ष जाता है। शेष चारों (उपशम क्षयोपशम, वेदक एवं सास्वादन) सम्यक्त्व के धारी अबद्धायु मनुष्य जघन्य उसी भव में क्षायिक समकित प्राप्ति कर लेने पर एवं उत्कृष्ट अनन्त भव करके मोक्ष जाते हैं। सम्यक्त्वधारी मनुष्य चौथे से सातवें गुणस्थान में से किसी में भी आयुष्य बंध कर लेता है तो उत्कृष्ट १५ भवों में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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