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जिनवाणी- विशेषाङ्क
पाँच भेदों वाली लब्धि प्रकृत है । ये पाँच लब्धियां प्रथम सम्यक्त्व में कारणभूत होती हैं । ९
क्षयोपशम लब्धि
पूर्व संचित कर्मों के मल रूप पटल के अनुभाग स्पर्धक जिस समय विशुद्धि के द्वारा प्रतिसमय अनन्तगुण ग हीन होते हुए उदीरणा को प्राप्त किए जाते हैं उस समय क्षयोपशम लब्धि होती । अर्थात् वह क्षयोपशम लब्धि है ।
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स्व. पं. टेकचन्द जी कहते हैं कि “कर्म के क्षयोपशम से प्रकट होवे, ऐसा संज्ञीपना व पंचेन्द्रियपना तथा इनकी शक्तिरूप भाव का होना क्षयोपशम लब्धि है । जो संज्ञी पंचेन्द्रिय नहीं होवे तो सम्यक्त्व नहीं होता है, इसलिए संज्ञीपंचेन्द्रियपने कौ क्षयोपशम होना आवश्यक है ।
स्व. पं. भूधरदास जी कहते हैं कि 'प्रथम क्षयोपशम लब्धि सों सैनी पंचेन्द्रिय पर्याय होई ।१ विशुद्धिलब्धि
प्रतिसमय अनन्तगुणित हीन क्रम से उदीरित (वेदे जाते हुए) अनुभाग स्पर्धकों से उत्पन्न हुआ साता आदि शुभ कर्मों के बन्ध का निमित्तभूत और असाता आदि अशुभ कर्मों के बन्ध का विरोधी जो जीव- परिणाम है उसे विशुद्धि कहते हैं । उसकी प्राप्ति का नाम विशुद्धि लब्धि है । देशना लब्ध
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छह द्रव्यों और नौ पदार्थों के उपदेश का नाम देशना है । उस देशना से परिणत आचार्य आदि की उपलब्धि को और उपदिष्ट अर्थ के ग्रहण, धारण और विचारण की शक्ति के समागम को देशना लब्धि कहते हैं ।
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है
इतना विशेष है कि यह देशना लब्धि कदाचित् मिथ्यात्वी से भी प्राप्त हो सकती । कहा भी है - 'मिथ्यात्वी के जो ११ अंग का ज्ञान होता है वह केवल पाठमात्र है, उसके अर्थों का ज्ञान उसको नहीं होता, ऐसा कहना ठीक नहीं है । क्योंकि शास्त्रों में कहा गया है कि मिथ्यादृष्टि मुनियों के उपदेश से अन्य कितने ही भव्य जीवों को सम्यग्दर्शन पूर्वक सम्यग्ज्ञान प्रकट हो जाता है । १५
देशना के पात्र
अष्टावनिष्टदुस्तर - दुरितायतनान्मुनिः परिवर्ज्य । जिनधर्मदेशनाया: पात्राणि भवन्ति शुद्धधियः ।। '
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अर्थात्-जो अप्रिय, कठिनाई से पार किये जाने वाले (कठिनाई से वश में किये जाने वाले) और पापों के घर स्वरूप इन ८ वस्तुओं (मधु, मांस, मद्य, बड़, पीपल, कठूमर, पाकर, ऊमर) का त्याग करते हैं वे ही देशना के पात्र होते हैं । सारतः देशनालब्धि के पूर्व ८ मूलगुणों का पालन आवश्यक है ।
देशना के फल का अधिकारी
व्यवहारनिश्चयौ यः प्रबुध्य तत्त्वेन भवति मध्यस्थ: । प्राप्नोति देशनायाः स एव फलमविकलं शिष्यः ॥
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अर्थात्- जो भव्य श्रोता व्यवहारनय व निश्चयनय के स्वरूप तथा भेद को सम्यक्
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