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________________ सम्यक्त्व-प्राप्ति में कारणभूत पाँच लब्धियां । जवाहरलाल सिद्धान्तशास्त्री क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य एवं करण इन पाँच लब्धियों का विवेचन इस ग्रंथ में अन्यत्र भी हुआ है, किन्तु प्रस्तुत लेख दिगम्बर स्रोत ग्रंथों पर आधारित है। इस लेख में प्रायोग्य लब्धि का विवेचन विशेष रूप से द्रष्टव्य है। करण लब्धि के अन्तर्गत श्वेताम्बर-मत में जहां, यथाप्रवृत्तकरण मान्य है वहां दिगम्बर मत में इसके स्थान पर अध:प्रवृत्तकरण शब्द प्रचलित है।-सम्पादक। लभ् धातु से क्तिन् प्रत्ययपूर्वक स्त्रीलिंग में ‘लब्धि' शब्द बनता है। लोक में इसके प्राप्ति तथा लाभ (मुनाफा) अर्थ एवं गणितशास्त्र में लब्धांक अर्थ माने गये हैं।' तत्त्वार्थसूत्र में एक स्थल पर 'लब्धयः.. पंच' इस सूत्रांश द्वारा लब्धि से दानादि क्षायोपशमिक लब्धियां ग्रहण की हैं। यथा-लब्धियाँ पाँच प्रकार की हैं-क्षायोपशमिक दान (२) क्षायोपशमिक लाभ, (३) क्षायोपशमिक भोग, (४) क्षायोपशमिक उपभोग और क्षायोपशमिक वीर्य । इसी ग्रन्थ में अन्यत्र एक सूत्र आया है-'लब्ध्युपयोगौ भावेन्द्रियम्'। इसकी सर्वार्थसिद्धि टीका में लिखा है-'लम्भनं लब्धि: । का पुनरसौ? ज्ञानावरणक्षयोपशमविशेषः । अर्थात् ज्ञानावरण कर्म के विशेष क्षयोपशम का नाम लब्धि है। तत्त्वार्थसूत्र में ही अन्यत्र एक सूत्र आया है-'लब्धि: प्रत्ययं च। इसकी सर्वार्थसिद्धि में लिखा है-तपोविशेषादद्धिप्राप्तिर्लब्धिः। अर्थात् तप-विशेष के द्वारा ऋद्धि की प्राप्ति होती है उसे भी लब्धि कहते हैं । (जैसे विष्णुकुमार मुनि को तप के द्वारा जो ऋद्धि-विक्रियाऋद्धि प्राप्त हुई थी, वह भी लब्धि है।) ___विद्यानन्दिस्वामी कहते हैं कि पदार्थों के जानने की शक्ति को लब्धि कहते हैं। यथा-'तत्त्वार्थग्रहणशक्तिर्लब्धिः ।। वीरसेनस्वामी बंधस्वामित्वविचय की टीका में कहते हैं “सम्मदंसणणाणचरणेसु जीवस्स समागमो लद्धी णाम।" अर्थात् सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र में जो जीव का समागम होता है उसे लब्धि कहते हैं। भाव यह है कि सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र की प्राप्ति लब्धि है। अन्यत्र वीरसेनस्वामी ने ही लब्धि से 'आगम' अर्थ निकाला है। जहाँ 'नवकेवललब्धिरमासमेत' कहा जाता है, वहाँ लब्धि नौ भेदों वाली जानी जाती है। यथा-क्षायिक दान, लाभ, भोग, उपभोग, वीर्य, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन व चारित्र । नियमसार में काल, करण, उपदेश, उपशम व प्रायोग्य, इन पाँच भेदों वाली लब्धि का उल्लेख है। प्रकृत में 'लब्धि' शब्द ___ ऊपर लब्धि के विविध अर्थ एवं विविध भेद कहे गए। उन सब में से कोई भी लब्धि यहां प्रकृत नहीं है। यहां तो क्षयोपशम, विशुद्धि , देशना, प्रायोग्य व करण, इन * प्रमुख दिगम्बर जैन विद्वान् Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003977
Book TitleJinvani Special issue on Samyagdarshan August 1996
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1996
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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