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जिनवाणी-विशेषाङ्क (३) सम्यक्त्व के ५ दूषणों से बचता रहे। पांच दूषण हैं-शंका, कांक्षा, वितिगिच्छा, परपाखंडसंस्तव, परपाखंडप्रशंसा ।
(४) सम्यक्त्व के ५ लक्षणों की आराधना का लक्ष्य बनाया रखे। पांच लक्षण हैं-शम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा और आस्था ।
(५) आठ प्रकार के दर्शनाचारों को जीवन में स्थान देवे। आठ आचार हैं-णिस्संकीय, णिकंखीय, णिवितिगिच्छा, अमूढदिट्ठी, उवबूह, स्थिरीकरण, वात्सल्य भाव, धर्मप्रभावना ।
(६) अधिक से अधिक निवृत्ति में रहे। जब भी प्रवृत्ति करनी पड़े, उस प्रवृत्ति में जीवनबुद्धि नहीं रखता हुआ कर्तव्यपरायणता को प्रधानता देता हुआ ट्रस्टी या धायमाता की तरह प्रवृत्ति करे। किसी भी प्रवृत्ति में नहीं उलझने की पूर्ण सावधानी रखे।
(७) अन्तर में विजातीय द्रव्यों की छाप नहीं जमने देवे व विजातीय द्रव्यों में अपनापन नहीं रखे।
(८) सदैव सजग रहकर कषाय से बचने का पुरुषार्थ करता रहे। प्रेम भाव, विनम्रता, सरलता (कथनी करनी एक) संतोषी प्रकृति, प्रसन्नता, निर्मलता और कर्तव्य-परायणता से कषाय-विजय में सफलता मिलती है। कषाय-विजय संबंधी साहित्य का अध्ययन, अपने दोषों का निरीक्षण, दूसरे के गुणों का अनुमोदन, दोषों की पुनरावृत्ति नहीं करने की प्रतिज्ञा, सबके साथ आत्मीय-भाव व आत्मीय-व्यवहार से कषाय सरलता से शान्त हो सकते हैं। __ (९) सदैव यह मानसिकता बनाकर रखे कि 'मैं चैतन्य हूँ, शरीर से अलग हं, मैं देह नहीं हूं, देह रूप नहीं हूँ, देह मेरा नहीं है, मैं देह का नहीं हूँ। मैं आत्मा सदा काल शाश्वत हूँ, अविनाशी हूँ, सिद्ध भगवान और मेरी आत्मा में सिर्फ कर्म-मैल का अन्तर है। मरने की प्रक्रिया मात्र शरीर की होती है, मैं कभी नहीं मरता हूँ। मैं शुभाशुभ कर्मों का कर्ता व भोक्ता हूँ। दूसरे सुख-दुःख में निमित्त मात्र होते हैं, वास्तव में उन परिस्थितियों का निर्माता मैं स्वयं हूं। मैं सत् पुरुषार्थ कर अवश्य सच्चिदानन्द अजर-अमर पद को प्राप्त कर सकता हूं'। इस प्रकार अवसर निकाल कर एकान्त में सब तरफ से मन हटा कर शांत भाव से स्वयं को स्वयं से देखने का पुरुषार्थ करता रहे। भावपाहुड, ३१ में आया है कि जो आत्मा अपने में लीन है, वही वस्तुतः सम्यग्दृष्टि है-अप्पा अप्पमि रओ, सम्मादिट्ठी हवेइ फुडु जीवो।
अन्त में जिनेश्वर देव से प्रार्थना है कि हम सब सम्यग्दृष्टि बनें, सम्यक् चारित्र, सम्यक् तप की आराधना करें व शीघ्र मोक्ष प्राप्त करें।
-गौतम फायनेन्स, बूंदी (राज.)
पच्चीस दोष आचार्य शुभचन्द्र के ज्ञानार्णव में सम्यक्त्व की प्राप्ति के लिए २५ दोषों के परिहार का कथन किया गया है (ज्ञानार्णव, षष्ठ सर्ग,श्लोक८) वे २५ दोष हैं-तीन मूढता, आठ मद, छह अनायतन, और शंकादि आठ दोष।
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