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बाद इन्द्र
वहाँ अतिपाण्डुकम्बला नामक शिलापर सिंहासन रखा और अपनी गोदी में प्रभु को लेकर सौधर्मेन्द्र पूर्व दिशा की तरफ मुँहकर के बैठ गया । उस समय अन्य ६३ इन्द्र और उनके आधीन असंख्य देवी देवता भी वहाँ उपस्थित हुए । आभियोगिक देव क्षीरसमुद्र से जल ले आये और सर्व इन्द्र-इन्द्रानियों ने एवं चार निकाय के देवों ने भगवान का जन्माभिषेक किया। सर्व दो सौ पचास अभिषेक हुए एक एक अभिषेक में ६४ हजार कलश होते है ।
इस अवसर्पिणी काल में चोवीसवें तीर्थकर का शरीर प्रमाण दूसरे तेईस तीर्थकरों के शरीर प्रमाण से बहुत छोटा था, इसलिए अभिषेक करने की सम्मति देने के पहले इन्द्र के मन में बड़ी शंका हुई कि भगवान का यह बाल-शरीर इतनी अभिषेक की जलधारा को कैसे सह सकेगा ?
भगवान अवधि ज्ञानी थे । वे इन्द्र की शंका को जान गये । तीर्थंकर का शरीर प्रमाण में छोटा हो या बडा किन्तु बल की अपेक्षा सभी तीर्थकर समान होते हैं और यह बताने के लिए उन्होंने अपने बाएं पैर के अंगूठे से मेरू पर्वत को जरासा दबाया तो सारा मेरू पर्वत कम्पायमान हो गया' ।
मेरु पर्वत के अचानक हिल उठने से इन्द्र विचार में पड गया । अवधिज्ञान से उपयोग लगाया तो उसे
उसे पता चला कि भगवान ने तीर्थंकर के अनन्तबली होने की बात बताने के लिये ही मेरु पर्वत को अंगुठे के स्पर्शमात्र से हिलाया है। इन्द्र ने उसी समय भगवान से क्षमा मांगी । अभिषेक के बा ने भगवान के अंगूठे में अमृत भरा और नंदीश्वर पर्वत पर अष्टाहक महोत्सव मनाकर और फिर अष्टमंगल का आलेखन करके और स्तुति करके भगवान को अपने माता के पास वापिस रख दिय
प्रातःकाल प्रियंवदा नामकी दासी ने राजा सिद्धार्थ को पुत्र जन्म की खबर सुनाई । राजा ने मुकट और कुंडल छोड़कर अपने समस्त आभूषण दासी को भेट में दे दिये और उसे दासीत्व से मुक्त कर दिया ।
राजा सिद्धार्थ ने नगर में दस दिन का उत्सव मनाया । प्रजा के आनन्द और उत्साह की सीमा न रही । सर्वत्र धम मच गई। कैदियों को बन्धन मुक्त कर दिया । प्रजा को कर मुक्त कर दिया सारा नगर उत्सव और आनन्द का स्थान बन गया । ____ जन्म के तीसरे दिन चन्द्र और सूर्य का दर्शन कराया गया छठे दिन रात्रि जागरण का उत्सव हुआ । बारहवे दिन नाम संस्कार कराया गया । राजा सिद्धार्थ ने इस प्रसंग पर अपने मित्र, ज्ञातिजन कटम्ब परिवार एवं स्नेहियों को आमन्त्रित किया और भोजन, ताम्बूल. वस्त्र अलंकारों से सब का सत्कार कर कहा- जब से यह बालक हमारे कुल में अवतरित हुआ हैं तब से हमारे कुल में धन, धान्य, कोश, कोष्टागार, बल स्वजन, और राज्य में वृद्धि हुई है। अतः हम इस बालक का नाम 'वर्धमान रखना चाहते है । सब ने इस सुन्दर नाम का अनुमोदन किया ।
वर्द्धमान कुमार का बाल्यकाल दास दासियों एवं पांच धात्रियों के संरक्षण में सुख पूर्वक बीतने लगा।
वर्धमान कुमार ने आठ वर्ष की अवस्था में प्रवेश किया एकबार वे अपने समवयस्क बालकों के साथ प्रमदवन में आमल की नामक खेल खेलने लगे । उस समय इन्द्र अपनी देव सभा में वर्द्धमान कुमार
१ बारह योद्धाओं का बल एक गांढ में होता है । दस सांढों का बल एक घोडे में होता है। बारह घोडों का बल ऐक भै से में होता है पंद्रह भैसों का बल एक मत्त हाथी में होता है। पांचसो हाथीयों का बल एक केशरी सिंह में रोता है। दो हजार केशर) सिंह का बल एक अष्टापद पक्षि में, दसलाख अशापद पक्षि का बल एक बालदेव में, दो बल देव का बल एक वासुदेव में, दो वासुदेव का बल एक चक्रवर्ती
। एक लाख चक्रवर्ती का बल एक देव में एक कर'ड देव का बल एक इन्द्र में और असंख्य न्द्र मिलकर भी भगवान की तर्जनी अगली को नमाने में भी असमर्थ होते हैं।
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