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भगवान ने कुमारावस्था में अठारह लाख वर्ष, एवं संयम तत में ५४ लाख वर्षे व्यतीत किए । इस प्रकार कुल ७२ लाख वर्ष आयु के पूर्ण होने पर भगवान मोक्ष में पधारे । भगवान श्री श्रेयांस प्रभु के निर्वाण के बाद ५४ सागरोपम बीतने पर भगवान श्रीवासुपूज्य का निर्धाण हुआ । १३-भगवानश्री विमलनाथ----
धातकीखण्ड द्वीप के प्राग्विदेह क्षेत्र में भरत नामक विजय में महापुरी नाम की एक महान रमणीय नगरी थी । वहाँ पद्मसेन नाम के राजा राज्य करते थे । वे धर्मात्मा एवं न्यायप्रिय थे । उन्होंने सर्वगुप्त नामके आचार्य के पास दीक्षा. ग्रहण की और साधना के सोपान पर चढते हुए तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन किया । कालान्तर में आयुष्यपूर्ण करके सहसार देवलोक में उत्पन्न हुए ।
इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में कांपिल्यपुर नामका नगर था। वहाँ कृतवर्मा नाम के न्यायप्रिय राजा राज्य करते थे । उनकी रानीका नाम श्यामा था । पद्मसेन मुनि का जीव सहसार देवलोक से च्युत होकर वैशाख शुक्ला द्वादशी के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में श्यामा देवी की • कुक्षि में उत्पन्न हुए ।चौदह महास्वप्न देखे । माघमास की शुक्ला तृतीया के दिन मध्यरात्रि में उत्तरा नक्षत्र में शूकर चिह्न से चिह्नित तप्तसुवर्ण की कान्तिवाले पुत्र को महारानी ने जन्म दिया । देवी देवताओं ने भगवान का जन्मोत्सव कियो
अनसार भगवान का नाम बिमलनाथ रखा गया। युवा होने पर विमलकुमार का विवाह अनेक राजकमारियों के साथ हुआ । साठ धनुष ऊँचे एवं एक सौ आठ छक्षण से युक्त प्रभु का उनके पिता ने राज्याभिषेक किया । ३० लाख वर्ष तक राज्यपद पर रहने के बाद भगवान ने वर्षीदान देकर देवों द्वारा तैयार की गई 'देवदत्ता' नामक शिविका पर आरूढ हो माघमास की शुक्ल चतुर्थी के दिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में छठ तप सहित सहस्वान उद्यान, में दीक्षा धारण की । साथ में एक हजार राजाओं ने भी प्रव्रज्या ग्रहण की । उस समय भगवान को मनःपर्यवज्ञान उत्पन्नहुआ इन्द्र द्वारा दिये गये देव दूष्य वस्त्र को धारण कर भगवान ने अन्यत्र विहार कर दिया ।
तीसरे दिन 'धान्यकूट' नगर के राजा 'जय' के घर परमान्न से पारणा किया ।
दो वर्ष तक छदमस्थ अवस्था में रहने के बाद भगवान पुनः कांपिल्यपुर के सहस्राम्र उद्यान में पधारे। वहाँ जम्बू वृक्ष के नीचे पौष मास की शुक्ला षष्ठी केदिन उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में षष्ट तप की अवस्था में शुक्ल ध्यान की परमोच्चस्थिति में केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त किया । देवों ने मिलकर केवलज्ञान उत्सव मनाया समवशरण की रचना हुई । भगवान की देशना से 'मंधर' आदि सत्तावन गणधर हुए । शासनदेव षण्मुख यक्ष और 'विदिता' नामकी शासन देवी हुई ।
भगवान के परिवार में अडसठ हजार ६८०००साधु, एक लाख आठ सौ१००८०० साध्वियाँ, । ग्यारह सौ ११०० चौदह पूर्वधर, चार हजार आठसौ ४८०० अवधिज्ञानी, पांच हजार पांचसौ ५५००
मनः पर्ययज्ञानी पांच हजार पांचसौ ५५०० केवलज्ञानी, नौ हजार ९००० वैक्रियलब्लिधारी, २०८००० दो लाख आठ हजार श्रावक, एवं ४३४००० चार लाख चौतीस हजार श्राविकाएँ थी। केवल ज्ञान के बाद दो वर्ष कम १५ लाख वर्ष तक भव्यों को प्रतिबोध देने के बाद उन्होंने आषाढ कृष्णा सप्तमी के दिन पुष्प नक्षत्र में छ हजार साधुओं के साथ एक मास का अनशन ग्रहण कर समेतशिखर पर मोक्ष प्राप्त किया ।
पन्द्रह लाख वर्ष कौमारावस्था में तीस लाख वर्ष राज्यकाल में, दो वर्ष कम पन्द्रह लाख वर्ष चारित्र में व्यतीत किए । भगवान की कुल आयु ६० लाख वर्ष की थी। भगवान श्रीवासुपूज्य के निर्वाण के तीस लाख सागरोगम बीतने पर भगवानश्री विमलनाथ प्रभु मोक्ष में पधारे ।
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