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भगवान श्री संभवनाथ के दो लाख साधु, तीन लाख छत्तीस हजार साध्वियां, चारु आदि १२ गणधर, (इक्कीससौ पचास चौदह पूर्वधर, ९६०० सौ अवधिज्ञानी १२५० मनः पर्ययज्ञानी, १५००० केव. लज्ञानी, १९८०० वैक्रियलब्धिधारी, १२०० वादी, २९३००० श्रावक एवं ६३६००० श्राविकाएँ हुई । ४-भगवान श्रीअभिनन्दन
अयोध्या नामकी नगरी में इक्ष्वाकु वंश तिलक संवर नाम के राजा राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम 'सिद्धार्थी' था । वह कुल मर्यादा का पालन करनेवाली श्रेष्ठ नारी थी ।
महाबल मनिका जीव विजय विमान से चवकर वैशाख शुका चतुर्थी के दिन अभिजित नक्षत्र में महारानी 'सिद्धार्थी' की कक्षि में उत्पन्न हुआ। महारानी ने चौदह स्वप्न देखे । गर्भकाल पूर्ण होने पर माघ शुक्ला द्वितीया के दिन जब चन्द्र अभिजित नक्षत्र में तब महारानी ने पुत्ररत्न को जन्म दिया । बालक का वर्ण स्वर्ण जैसा था और वानर के चिह्न से चिह्नित था । बालक के जन्मते ही समस्त दिशाएँ प्रकाश से जगमगा उठीं । इन्द्रों के आसन चलायमान हुए । इन्द्र, देव देवियों ने मेरुपर्वत पर भगवान का जन्मोत्सव किया । जब भगवान गर्भ में थे । तव सर्वत्र आनन्द छा गया था इसलिए माता पिता ने बालक का नाम 'अभिनन्दन' रखा । ___अभिनन्दन कुमार युवा हुए । उनका अनेक श्रेष्ठ राजकुमारियों के साथ विवाह हुआ । साढे बारह लाख पूर्व तक कुमार अवस्था में रहने के बाद भगवान का राज्याभिषेक हुआ । आठ अंग सहित साढे छत्तीसलाख पूर्व तक राज्य धर्म का पालन किया । ___ जब भगवान ने दीक्षा लेने का विचार किया तब लोकान्तिक देवोंने आकर भगवान को दीक्षा के लिए प्रेरणा दी । भगवान ने नियमानुसार वार्षिक दान दिया । माघ शुक्ला १२ दिन अभिजित नक्षत्र में इन्द्रों द्वारा तैयार की गई अर्थसिद्धा नामकी शिविका पर आरूढ होकर सहस्राम्र उद्यान में पधारे । वहां एक हजार राजाओं के साथ भगवान ने प्रव्रज्या ग्रहण की । परिणामों की उच्चता के कारण भगवान को उसी क्षण मनः पर्ययज्ञान उत्पन्न हो गया । दीक्षा के समय भगवान ने छठ की तपस्या की थी । दूसरे दिन अयोध्या नगरी के राजा इन्द्रदत्त के घर परमान्न (खीर) से पारणा किया । उनके प्रभाव से वसुधारादि पांच दिव्य प्रकट हुए।
अठारह वर्ष तक छदमस्थ अवस्था में विचर कर भगवान अयोध्या नगरी के सहस्राम्र उद्यान में पधारे । वहां शष्ठ तप कर शालवृक्ष के नीचे ध्यान करने लगे। शुक्लध्यान की परमोच्चस्थिति में भगवान ने घाति कर्मो का क्षयकर केवलज्ञान और केवल दर्शन प्राप्त किया । देवोने समवशरण रचा । भगवान ने देशना दी । भगवान की देशना सुनकर वज्रनाथ आदि एकसौ सोलह ब्यक्तियों ने प्रव्रज्या लेकर गणधर पद प्राप्त किया । भगवान की देशना के बाद वज्रनाथ गणधर ने देशना दी।
भगवान के शासक रक्षक देव यक्षेश्वर एवं शासन देवी कालिका थी ये व्यंतरदेव होते हैं । भगवान के ३०००००, साधु, ६३ ० ० ० ० साध्वियाँ, ९८०० अवधिज्ञानी १५०० चौदह पूर्वधर, ११६५० मनः पर्ययज्ञानी, ११०००, वाद लब्धिधारी, २८८००० श्रावक, एवं ५२७००० श्राविकाएं हुई ! केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद आठ पूर्वांग अठारह वर्ष न्यून लाख पूर्व व्यतीत होने पर एवं अपना निर्वाण काल समीप जानकर भगवान सम्मेत शिखर पर पधारे । वहां एक हजार मुनियों के साथ अनशन ग्रहण किया वैशाख शुक्ला अष्टमी के दिन सम्पूर्ण कर्मो का अन्तकर भगवान हजार मुनियों के साथ निर्वाण को प्राप्त हुए । इन्द्रादि देवों ने भगवान के देह का संस्कार कर निर्वाण महोत्सव मनाया । श्री संभवनाथ भगवान के बाद दस लाख करोड सागरोपम व्यतीत होने पर भगवान श्री अभिनन्दन मोक्ष पधारे ।
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