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________________ ४०० वयोवृद्ध स्थविर पूज्य सुरजबाई केशरबाई पारवतोबाई श्री तारामतिबाई म. श्री वासुमतीबाई म. आदि ठाणां बिराजित थो । इनके पास पालनपुर की परम वैराग्यवति श्री हीराबहन को दीक्षा होने से महासतीजी म. के तथा संघ के आग्रह से दीक्षा दिन तक बिराजित रहे । और पूज्यश्री के हाथ से दीक्षा बहुत ही उत्सव के साथ समपन्न हुई। पालनपुर पधारते ही दामनगर से दुखद समाचार मिले कि शास्त्रज्ञ सेठ श्री दामोदरदास भाई का देहावसान हो गयां । इन समाचारों के आने पर पूज्य आचार्य महाराज श्री ने सोचा कि मूल कर्णधार अब नहीं रहे तो फिर दामनगर जाने से क्या लाभ ? ऐसा विचार कर के श्री मोहनलालभाई अजमेरा को दामनगर समाचार भेजे कि जिस उद्देश्य से दामनगर के लिए बिहार हुआ था वह उद्देश्य अब सेठदामोदरदास भाई के न रहने से पूर्ण होना असंभव सा लगता है, इसलिये पूज्य आचार्य श्री की पालनपुर से हि वापीस लोट जाने की इच्छा है । ये समाचार पहुँचते ही राजकोट से सेठ श्री गुलाबन्द भाई रतलाम से श्री सोमचन्द तुलसीदासभाई व दामनगर से श्री जगजीवनभाई बगडिया तथा श्री मोहनलालभाई अजमेरा पालनपुर आए । दामनगर से सेठ श्री दामोदरदासभाई के पुत्र सेठ विनयचन्द्रभाई ने इन के साथ पत्र भेजा । सभी का एक ही आग्रह था कि सेठ के देहावसान हो जाने से पूज्य श्री को सौराष्ट्र में जिस उद्देश्य से पधारने की विनन्ती की है वह उद्देश्य मिट नहीं जाता है अर्थात् शास्त्र लेखन कार्य अवश्य चलेगा कृपाकर के पिछे आप लोटे नहीं । दामनगर अवश्य पधारें । इस प्रकार आए हुए प्रतिनिधि मंडल द्वारा आग्रह होने पर पालनपुर से सिद्धपुर ऊंझा महेसाणा विरमगाम होते हुए सौराष्ट्र में प्रवेश किया । मार्ग में ढांकी गांव से लीलापुर स्टेशन पर पूज्य श्री पहुंचे तब अत्यंत गर्मी के कारण सभी सन्तों को पिपासा अधिक सताने लगी । ज्येष्ठ मास की कड़ाके को गर्मी और फिर ऊसर की खारी भूमि होने से धूप की प्रखरता तो अधिक सता रही थी। ढांकी गांव में दरबार जोरुभा क्षत्रिय है वह बडे हि विवेकी और उदार है, जैन मुनियों की निर्दोष आहार पानी की व्यवस्था के लिये प्रयत्न करने वाले श्रद्धावान थे । वे दो मुनि को गांव में गरम पानी के लिये ले गए । उधर पिपासा की अधिकता से संतप्त मुनिवरोंने सोचा कि पास ही में जिनींग फेक्ट्री है वहाँ पानी मिलेगा इस उद्देशसे वहाँ जाकर के इंजन से गरम बना हुआ पानी लाकर हवा में ठण्डा करके ज्योंही पिया तो पीने वाले मुनियों को वमन हो गया। वह पानी इतना कटु और खारा था कि जिह्वा पर एक बीन्दु रखें तो भी जी घबराने लगे । इतने में गांव में गए हुए मुनि छाछ व गरम पानी ले आए, जिसे पीने के बाद ही सान्त्वना मिली। वहां से लखतर पधारे, लखतर महाराजश्री इन्द्रसिंहजी के कारभारी (कामदार) कोठारी जैन थे। उन्होंने लखतर नरेश को पूज्य श्री के पदापण के समाचार दिये तो नरेश स्वयं दर्शन तथा व्याख्यान श्रवण के लिये आए । पूज्य श्री की आज्ञा से लखतर नरेश ने अपनी राजधानी में एक दिन पाक्वी (अगता) पलवाई। स्कल के पटांगण में पूज्य श्री ने ईश्वर प्रार्थना विषय पर प्रवचन दिया। लगभग ४ हजार जनता उपस्थित थी। स्वयं परिवार सहित प्रवचन सुनने के लिए आए थे । लखतर राज्य जब स्वतंत्र राज्य था तब लखतर नरेश ने अपने राज्य में कतलखाना, दारुपीना, सिनेमां और होटल इन चार व्यापारों को रोक रखा था, वे राजा यह मानते थे कि ये चारों ब्यापार मेरी प्रजा के धन को और बुद्धि को बिगाड़ने वाले हैं। इन चारों कार्यों को अपने राज्य में न होने से ही प्रजा के धन की सुरक्षा रहेगी और बुद्धि की पवित्रता बनी रहेगी। जब तक अंग्रेज राज्य नहीं हआ तब तक लखतर में ये चारों राक्षसी व्यापार बन्द थे। आज इन्हीं के कारण भारतमें नैतीकता का ह्रास होता नजर आता है कारण इन हि व्यसनो से देश दुखी होता जा रहा है। फीर भी इन्हीं की प्रगती दिखती है, वहाँ से आचार्य श्री सुरेन्द्रनगर की तरफ विहार कर दिया सुरेन्द्रनगर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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