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________________ जैन धर्म तो समतानो छे-सूत्र पाठ छे के (समयगए धम्मं विपहिए) पण ज्यारे समतानी मर्यादा छूटी जाय छे. त्यारे नथी रहे तो धर्म के नथी रहेती जानाज्ञा. धर्मनी जग्या 'दक' ल्ये छे अने ,जीनाज्ञा' नी जग्या स्वआज्ञा ले छे. मनुष्यने बळथी सजा पहोंचाडवानी नीती राज्योमा होय छे. केमके तेने सत्तानु संरक्षण करवानु होय छे, पण ए नीती संतोनी न होई शके, केमके संतोने सत्तानु नहि पण पोताना संयमर्नु रक्षण करवानुं होय छे. अने ज्यां जीननी आज्ञानु अतिक्रमण थाय त्यां संयमनं रक्षण शी रीते होई शके? ____मारी पासे शास्त्रोद्धार नो कार्य कराववा माटे दरखास्त आवी त्यारे साराये समाजनुं अवलोकन करतां ए काम करी शके तेवी व्यक्तिओ मने बे नजरमां आवो. (१) पं, उपाध्याय श्री आत्मारामजी महाराज अने(२) पू० आ० श्री घासीलालजी महाराज प्रथमनी व्यक्ति वधारे दूर छे अंते आपणो सम्बन्ध ओछो छे तेथी पू० श्री घासीलालजी महाराज नी पसन्दगी वधारे थई, संस्कृतमा स्वतन्त्र टीका लखी शके एवी भूतकाल अने वर्तमानमा आ एक ज व्यक्ति देखाणो, आवा प्रखर पंडित रत्न ना ज्ञान ने बळथी मात्र मामुली कारण माटे गुंगळावी नाखीने समाज ने तेथी बे नसीब राखवो तेमां ज्ञानावरणीय कर्मना बन्धना भय रहेलो छे, आवा ज्ञान ना उपयोग खूद कोन्फरन्स पण करे छे, वळी प्रवचननी दीपती प्रभावना करीने, राजा महाराजाओ शुद्धाने पण आकर्षनार जे व्यक्ति होय तेने समजी सर्वने सहकार आपवो जोइये, आवो दाखलो भूतकालमा 'श्री सिद्धसेन दिवाकर' नो बनेलो छे. आप भाईओ पूण्यवान छो आ प्रश्न खास शास्त्रिय होवाथी कदाच आप अपरिचित हो, तेथी हूं नम्रता साथे विनंती करी शकुं के, सत्यने खातर कोई छे. तटस्थ आचार्यो नी सलाह लेवी. उपरना कारणने 'मामुली' एटला माटे कहयु छे, के पू० श्री घासीलालजी म. ना पृथ्थकरणमां कारण तेमनी कोई अन्तकृत्व के चारित्रनी सबलता नथी पण मात्र मतभेद छे. अहीं ते विरोधी बे मतमां सत्य कोना पक्षे छे ये तो मात्र सर्वज्ञ देवज कही शके, पण आ किस्सामां तो एक पक्षे संघ बळथी 'पृथ्थकरण कर्यु माटे तेने मामुली कहयु छे. आ पुरुषना पृथकरण पछी अनेक चातुर्मासो मंडलना सानिध्यमां मडळना प्रदेशमां थाय छे. तेना करता दामनगर संघ क्लेशथी ए व्यक्ति ने त्रणसो गाउ टूर लई जाय छे ते कार्य खरो रीते तो आपने अनुकूल ज थतुं गणावू जोईये, जवाब आपवा मारी इच्छा न हती केमके आमार्ग वीतराग शासनना दरज्जाने उतारी नाखे छे, पण आपतो साहस करी चूकया तेथी जवाबमां सत्य जाहेर न थाय तो आ व्यक्ति ने अन्याय मळवा जेवु थाय तेमज अत्रे जवाब पण माग्यो हतो आ लेखमां कोई पण प्राणी प्रत्ये अविनय थयो होय तो हूँ विधि साथे क्षमा मांगू छं सुश्रावकोनु कर्तव्य शासनमा उपस्थित थयेल झगडा उपशमाववानां कार्यमा दामनगर संघनो वधारे सारो उपयोग करवानो अवकाश आपने हतो अने छे. शेठ दामोदरदास. जगजीवन-दामनगर दामनगर सन्ध के इस उत्तर से विरोधियों का टिमटिमाता दीप पूज्य श्री के प्रखर तेज में विलीन हो गया। पूज्य आचार्य श्री अपनी गज गमनि चाल से भव्य आत्माओं को बोधामृत पान कराते हय आगे पधार रहें हैं । पाली का महान मुनिजनों का मिलन व श्री संघ की भक्ति अपूर्व थो वहाँ से-साण्डेराव, शिवगंज, सिरोही होकर अनादरा के मार्ग से अनेक गांवों को पावन करते हुबे आबू माउन्ट पधारे । माउन्ट आब राजस्थान का काश्मोर है । वैशाख मास में भी वहां इतनी ठडक रहती है कि कमरा बन्द करके सोना पड़ता है। गर्मी के दिनों में गुजरात सौराष्ट्र के सहेलानी भमरे बहुत आते हैं । उस समय वहां शेर भी बहत हैं। सुबह जल्दि या शाम को देरी से जाना आना सर्व के लिए भय भरा माना जाता है। आचार्य श्री शान्तिविजयजी म. ने यहां के पर्वतों में रहकर योग साधना की थी । कई वैष्णव सन्त जंगल में योग साधनार्थ रहते हैं । जैन मन्दिर के मेनेजर आदि ने पूज्य आचार्य श्री के प्रति अच्छी श्रद्धा भक्ति बताई । पांच दिन बिराज कर आबूरोड होते हुए पालनपुर पधारे । दरियापरी संप्रदाय के विद्वान महासतीजी श्री शास्त्रज्ञ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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