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में सौराष्ट्र के एक महानसंत मुनिश्रीसदानन्दी पं. रत्न सेवाभावी गुणानुरागो श्रीछोटालालीजी महाराज ठाणा ३ से बिराजमान थे । स्वयं पूज्य आचार्य श्री के स्वागत के लिए सामने पधारे। जो के श्राचार्य श्री से दिक्षा में वडील थे फिरभी वात्सल्य और स्नेह अपूर्व रहा तीनों संत एक महान विभूति थी, सदानन्दनी म० की प्रेरणा से सुरेन्द्रनगर श्रीसंघने खूब सेवा बजाई और श्री संघ ने पूज्य श्री की आज्ञा से पाखी पलवाई । महाजन वाडी में जाहिर सभा हुई, जिसमें हजारों स्त्री पुरुष सम्मिलित हुए । वहां विराजित सदानंदी पं. मुनिश्री छोटालालजी म० का तथा पूज्य श्री का सम्मिलित व्याख्यान हुआ । वहां से वढवाण शहेर पधारे । वढ़वाण शहर का श्रीसंघ बडा हि उत्साहि, आगे वान बडे दश और धर्म प्रेमी हैं । श्री वढ़वाण संघने नरेश हिज हाईनेश श्री सुरेन्द्रसिंहजी साहेब को पूज्य श्री के पधारने के समाचार दिये । वढवाण नरेश ने पूज्य श्री के दर्शन किये, व्याख्यान सुना और पूज्य श्री घासीलालजी म० की इच्छानुसार सारे शहर में पाखी पलवाई । जाहिर सभा हुई जिसमें वढवाण नरेश सपरिवार तथा वढ़वाण की जैन अजैन जनता हजारों की संख्या में उपस्थित हुई।
वढवाण नरेश श्रीसुरेन्द्रसिंहजी उस समय ३० तीस वर्ष के थे । आप बडे सादे निर्मल जीवन जीने वाले थे । जीवन में कभी दारु मांस को पास नहीं आने दिया । इनके यहां राजस्थान के सगे सम्बन्धी राजा आते तो उन्हें भी वे स्वयं अहिंसाके मर्म को समझाते और दुर्व्यशन से दूर हटाते । सादा निर्मास भोजनसे स्वागत करते परन्तु दारु, मांस खाने पीने वालों के लिये भी सात्वोक व्यवस्था कर देते थे । अहिंसा और निर्व्यसनी राजा लोग सौराष्ट्र में ही दिखाई दिये और सौराष्ट्र एक महान अहिंसक देश है ।
वहां से विहार कर चूडा राणपुर होते हुए बोटाद पधारे, यहां मालवाप्रान्त के स्वीरपदविभूषित पं० मुनि श्रीकिशनलालजी महाराज व प्रखर वक्ता पं श्री सौभागमलजो महाराज आदि मुनि मण्डल बिराजित थे । संघ ने पूज्य श्री का बहुत शानदार स्वागत किया । गुजरात-सौराष्ट्र में संप्रदायें हैं, संप्रदायवाद भी बहुत है, परन्तु परस्पर के व्यवहार में बडे उदार हैं कुशल है । बाह्य कटुता नहीं हैं । एक मकान में ठहरना, एक साथ व्याख्यान देना, आहार पानी परस्पर नियमानुसार लेना-देना यथाक्रम वन्दना करना आदि बाह्योपचार-बाह्य व्यवहार अति प्रशंसनीय है। जब कि मारवाड मेवाड मालवे प्रान्तमें श्रमण संघ बनजाने पर भी परस्पर द्वेष वृति विशेष दृष्टि गौचर होती है । ईर्षा और द्वेशमय व्यवहार नजर आता है । सौराष्ट्र जैसा परस्पर प्रेम सुमेल नहीं है श्रमण संघ न हुवा उसके पहले तो परस्पर का सौम्यव्यवहार आकाश कुसुम वत था । वहां से पूज्य श्री ढसा पधारे। यह समाचार से दामनगर श्री संघ को बड़ा हर्ष हुआ दामनगर संघ के आगेवान दर्शनार्थ आये और दामनगर चातुर्मासार्थ प्रवेश का समय नक्की करके गये। वि. सं, २००१ का ४३ वां चातुर्मास दामनगर में
दामनगर श्री संघ ने बडे ही उत्साह के साथ पूज्य श्री का चातुर्मास प्रवेश के समय स्वागत किया। चातर्मास प्रारंभ के साथ ही तपस्वीश्री मदनलालजी महाराज साहेब तथा तपस्वी श्री मांगीलालजी महाराज की तपश्चर्या प्रारंभ हई । तपश्चर्या बढने के साथ-साथ आसपास के गांवोंवाले श्री संघ के रूप में दर्शना आने लगे । दामनगर श्री संघ में भी तपश्चर्या की झडी लग गई । संघ में धर्म उत्साह बढता ही गया ।
पर्यषण पर्व धर्मध्यान तपश्चर्या द्वारा मनाये जाने के बाद दोनों तपस्वी मुनिराजों की तपश्चर्या का पूर भाद्रपद शुक्ला १४ का निश्चित हुआ । तपश्चर्या के पूर पर आने वाले दर्शनार्थियों की व्यवस्था कैसे करना १ संघ के सामने यह मुख्य प्रश्न था। तहसीलदार साहेब ने भी संघ के कार्य कर्ताओं को बलाकर पूछा कि तुम्हारे यहां तपोत्सव पर बाहर से आने वाले हजारों दर्शनार्थियों के लिए भोजन विगेरे की व्यवस्था कन्ट्रोल की स्थिति में केसे करोगे ? कार्यकर्ताओं ने जो समाधान दिया वह उन्होंने नोट कर लिया ।
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