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है । उदयपुर से देलवाड़ा घासा, पलांना, थामला, सारोल, पाखंड रेलमगरा जितास पोटला सहाडा होते हुए गंगापुर पधारे, यहां एक दिन का अगता पलवाया । बाजार में पूज्य श्री के व्याख्यान हुए। भीलवाडा पधारने पर यहां भी एक दिन का अगता पलाया गया। स्कूल के प्रांगण में एक विशाल सभा हुई। जिसमें कलेकटर तहसीलदार आदि राज्याधिकारी, प्रधानाध्यापक आदि विद्याधिकारी तथा भीलवाड़ा भूपालगंज के श्रावक, श्राविका जैन अजैन हिन्दु, मुस्लीम बहुत बडी संख्या में उपस्थित रहे। वहां से शाहपुरा पधारे शाहपुरा में रामस्नेही संप्रदाय की मुख्य गादी है। रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य तथा रामस्नेहि साधु जैन मुनियों से पूरा स्नेह रखते हैं । सुना जाता है कि राम स्नेही संप्रदाय के आद्य संस्थापक श्री राम चरणजी महाराज का मारवाड के पूज्य श्री जयमलजी म. के साथ गृहस्थावास में अच्छी मैत्री थी । जयमलजी को माता और पत्नी की तरफ से दीक्षा के लिये आज्ञा नहीं मिल रही थी । रामचरणजी संसार त्याग करने में अधीर बने हुए थे, इस कारण वे घर छोडकर निकल गए और किन्हीं वैष्णव सन्त के पास पहुंच कर शिष्य हो गए । इन्हें अपने त्यागी जीवन में अपूर्णता दिखाई दी, जिससे वे स्वतंत्र विचरण करने लगे । उन्होंने अपने ज्ञान बल से रामस्नेही संप्रदाय की स्थापना की । रामस्नेही संप्रदाय में प्रारंभ से हि खुले पेर पैदल चलना, भिक्षा मांगकर लाना, सिर मुंडन 'बिना छाना पानी नहीं पीना, भोजन करते समय नीचे एक बुंद नहीं पड़ने देना, ब्रह्मचर्य पालन आदि बहुत से नियम जैनधर्म से मिलते जुलते चले आ रहे हैं । रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य तो वर्तमान में भी पैदल हि जाते आते हैं।
. रामद्वारा के पास से पूज्य श्री शहर में पधार रहे थे वहां किन्हीं रामस्नेहो मुनि की नजर पूज्यश्री पर पडी पास में जाते ही वे बोले आप यहों ठहरें । ठहरने का आग्रह करके वे अपने आचार्य श्री निर्भयरामजी म० के पास पहुंचे और जैन मुनि के आने के समाचार दिये । आचार्य जी को ठहराने के लिये मकान आदि की व्यवस्था करने का आदेश दिया । तदनुसार रामस्नेही मुनियों ने सारी व्यवस्था कर दी । विश्राम लेने के बाद आचार्य श्री निर्भयरामजी म. के तथा पूज्य आचार्य श्री घासीलालजी म. के परस्पर सौहार्द पूर्ण वार्तालाप हुआ । उस समय दोनों ओर के सभी मुनि वार्तालाप श्रवणार्थ उपस्थित वे । वार्तालाप के बाद रामस्नेही आचार्यजी ने अपने भंडारी शिष्य से रामद्वारा उपासना गृह दिखाने को कहा दतनुसार वह उपासनागृह पूज्य श्री को तथा साथ के मुनियों को दिखाया। उपासना गृह में जोरों से बोलना निषेध है। अनन्तर दिन में तथा रात्रि में रामस्नेही सन्त पूज्य श्री के पास आकर विविध बातचीत करते रहे।
दूसरे दिन शाहपुरा पधारे शाहपुरा में एक सप्ताह व्याख्यान का लाभ देकर धनोप पधारे। धनोप खारी नदी के बिल-कुल किनारे बसा हुआ है। चातुर्मास में पूर आया तब गांव के चारों ओर पानी ही पानी था, धनोप उस समय टापु सा बन गया था। यहीं से जलविप्लव के भयंकर दृष्य सामने आने लगे। नदी के दोनों तटो से पानी दो दो मोल दूर फेल गया था। दो मील दूर के वृक्षों में पानी से प्रवाहित कचरा उलझा हुआ दिखाई दे रहा था । किसी महान पुण्योदय से ही धनोप गांव जलप्लावन से बच गया । यहां भो एक दिन का अगता पलाकर पूज्य श्री ने ईश्वर प्रार्थना करवाई । धनोप से देवलिया कलां पधारे। यहां पर कोटा संप्रदाय के वयोवृद्ध पं. श्री गोडीदासजी म. ठाणा २ के साथ दो दिन बिराजना रहा। यहां के ठाकुर सा० ने पूज्य श्री की आज्ञा से एक दिन का आगता पलवाया, पूज्य श्री का ईश्वर प्रार्थना के विषय पर व्याख्यान हुआ । धनोप से देवालियाकला, विजयनगर, जालिया आकडसादा, पडासोली, आसीन्द, जगपुरा, जयनगर, शभूगढ आदि जो गांव खारी नदी के आस पास वसे हुए हैं। जिनमें भयंकर बाढ के कारण संहारक लीला का तान्डव नृत्य दिखाई दे रहा था । पूज्य श्री तथा साथ के मुनियों ने इन विनाश पूर्ण दृष्यों को देखा तो हृदय द्रवित हो उठा । एक गांव में केवल वैष्णव मन्दिर ही वचा, जहां पूज्य श्री
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