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________________ ३९४ आने लगे । दूसरे दिन पूज्य श्री के और केसरीचंदजी पंचोली के परस्पर ज्ञान चर्चा हो रही थी तब पंचोलीजी ने कहा-मैं भी जैन ही हूँ । अन्य जितने भी जैन हैं वे जैन कुल में जन्मे हुए होने से जैन हैं । तत्र में तो जैन धर्म को समझ करके जैन बना हुवा हूँ । कलकत्ता वाले बाबू धनपतसिंहजी मेरे परम मित्र थे । उनका प्रकाशित पूरा साहित्य मेरे पास है । मैने उन सभी ग्रन्थों को पढे हैं । फिर तो जैन धर्म के विषय की तत्व चर्चा बहु समय तक परस्पर चलती रही । उन्होंने अपने पास जैन धर्म को पुस्तकोंका संग्रह जो पूरा कबाट भरा हुवा था,वह पूज्य श्री को दिखाया । पूज्य श्री उनके जैन धर्म का ज्ञान सुनकर बहुत ही आनन्दित हुए। डॉ. मोहनसिंहजी महता द्वारा स्थापित विद्याभवन संस्था पास ही होने से वहां के मास्टर केसरीचन्दजी बोर्दिया ने पूज्य आचार्य श्री को विद्याभवन पधारने का आग्रह किया । पूज्य श्री अपने मुनियों सहित वहां पधारे । श्री बोर्दियाजी ने संस्था में बालकों को अक्षर ज्ञान, तकनिकि ज्ञान, जीवन निर्माण ज्ञान, किस तरह दिया जाता है वह सर्व क्लासवार बताया । बाद में एकत्रित छात्रों को पूज्य श्री ने विनयव्यवहार-धार्मिक ज्ञान बढाने का प्रेरणात्मक उपदेश दिया । ____ फतेपुरा फतहसागर तालाव के नीचे की ओर बसा हुआ होने से जलवायु की शुद्धता होने के कारण यहां वाडियां युक्त बंगले अधिक हैं। यहाँ पर शिक्षित वर्ग ही अधिक रहता है । इन सभी की इच्छानुसार क्लब घर में पूज्य आचार्य श्री का व्याख्यान हुआ । फतेपुरा के अतिरिक्त उदयपुर शहर से भी व्याख्यान श्रवणार्थ लोग अधिक संख्या में आए थे। शिक्षित वर्ग की सभा के अनुसार पूज्य श्री ने वैसा ही व्याख्यान (असाम्प्रदायिक सार्वजनिक उपदेश) दिया. जिसे सुनकर सारी सभा अति प्रसन्न हुई । श्री केसरीचन्दजी पंचोली के आग्रह से पूज्य श्री उनके बंगले पांच दिन तक बिराजे. उनका आग्रह तो बिराजित रखने का था परन्तु रेल्वे मेनेजर श्री चन्द्रसिंह जी महता के आग्रह से 'चन्द्रनिवास' पधारे वहां दो दिन बिराजकर फिर सरुपसागर के किनारे डॉ. श्री मोहनसिंहजी महेता के बंगले पधारे. यहां पधारे ने पर श्री समीर मुनिजी को टाइफाँड ज्वर हो गया, जिससे एक माह तक इसी बंगले में बिराजना पडा । उधर दामनगर से सेठ दमोदरदास भाई का पत्र लेकर श्री मोहनलालभाई अजमेरा व सेठ गुलाब चन्दभाई पानाचन्द महेता रतलाम के सेठ सोमचन्द तुलसीदासभाई महेता आदि का डोप्युटेशन दामनगर सौराष्ट्र पधारने की विनन्ती करने के लिए आया । श्री मोहनलालभाई अजमेरा ने पूज्य श्री को दामनगर पधारने का अति आग्रह किया। तीनोहि अति श्रद्धालु धर्मनिष्ठ कर्तव्यशीलशास्त्र के अनुभवि होने से उन्होंने पूज्य श्री के सामने इस प्रकार भाववाही विनन्ती की, जिसे पूज्य श्री को स्वीकारनी पड़ी। श्री डेप्युटेशन विनन्ती स्वीकृत करा के प्रसन्न होकर दामनगर गया । महाराणा श्री भूपालसिंहजी ने उदयपुर पधारने की विनन्तो करने के वास्ते श्री कन्हैयालालजी चौवीसा को गोगुन्दा भेजे थे, यह पहले हि लिखा जा चुका है । श्री महाराणा साहेब पूज्य श्री से उपदेश सुनने के इच्छुक होने से उदयपुर में प्रसिद्ध सलियों की वाडी के महलों में उपदेश का आयोजन रखा गया है । वहां हिज हाइनेश महाराणाश्री ने धर्म उपदेश, स्वाध्याय पाठ सुना। उसके बाद महाराणाजी से पूज्यश्री ने फरमाया कि दामनगर व सौराष्ट्र से दामनगर श्री संध का डेप्युटेशन विनन्ती के लिये आया था जिससे उधर विसार होना निश्चित हुआ है । महाराणाजी ने पूज्य श्री से कहा कि आप बहुत दूर पधार जाओगे तो वापीस कब पधारोंगे ? यहां से बिहार हो उसके पहले एकबार फिर दर्शन देना । तदनुसार दूसरी बार बडे महलों में पूज्य श्री का उपदेश हुआ, जिसे श्री महाराणाजी और महाराणीजी साहेबा को धर्म उपदेश सुनने का सुयोग्यअवसर मिला । महाराणाजीने उपदेश सुनने के बाद पुनः जल्दि मेवाड एधारने का अति आग्रह किया । उस समय किसी को स्वपप्न में भी वह कल्पना नहीं थी कि पूज्य आचार्य श्री घासीलालजी म, का उदयपुर से यह अन्तिम विहार हो रहा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003976
Book TitleGhasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRupendra Kumar
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages480
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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