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रात्रि निवास बिराजे । चान्दनी रात, पानी के प्रवाह से प्रवाहित गांव के घरों को खण्डित भीते राक्षसों की सी भयानक दिखाई दे रही थी। गांव के निराश्रित लोग खन्डित गांव से कुछ दूर झोपडीयों में रह रहे थे। उजड़ गांव में घुग्घुओं की आवाज रात्रि को निरवता को भयानक बना रही थी। बिजयनगर के पास एक गांव ऐसा हो गया कि वहाँ का स्थल देखकर कोई नहीं कह सकता कि यहां गांव था । मार्ग में मनुष्यों की खोपडियां मनुष्यों की हड्डियां बिखरी पडी थी। गनी के प्रवाह ने कहीं खेतों में रेती का ढेर कर दिया तो कहीं खेतो में ऐसी तराडे डाल दी कि जहां कभी फसल ही नहीं बोया जासके । ये सारे दृष्य अनित्य, अशरण संसार भावना को उद्वेलित कर रहे थे ।
उन गांवो के लोगों से भयानक जलप्लावन के समय का विविध बातें सुनने को मिली । एक मकान में बर्ड पाट पर एक आदमी निश्चिन्त सोया हुआ था । मकान में पूर का पानी भर जाने से पाट ने नाव का रुप धारण कर लिया । आदमी जग गया और जमीन से उचे हुए पाट पर सावधानी से बैठा हुआ इस भयानक आपत्ति से बचने की राह देख रहा था, वहां तो बहते हुए पानी में से एक बडा भयंकर काला सांप उसी पाट पर आश्रय लेने के लिये आगया । भय के समय प्राणी परस्पर शत्रता भूल जाते हैं,
और परस्पर मैत्रीभाव से रहते हैं। इस बात का यह जीवित उदाहरण सामने उपस्थित था । नदी के प्रवाह में बह रहे मूर्दो में एक कोई अभागी माता भी थी, जिसका छोटा सा बालक उसके वक्षस्थल पर स्तनों से मुह लगाए हुए था । दोनों निर्जीव जल स्तर पर माता पुत्र प्रेम दिखाते हुए बहते चले जा रहे थे ।
एक घर से सारा परिवार पानी के भयानक प्रवाह से बचने के लिये रक्षित स्थान की तरफ जा रहे थे । उस सम्य गृह स्वामी को आभूषण से भरि हुई पेटी स्मरण हो आई, और वह आभूषण पेटी लेने पुनः घर में आ गया, घर में पानी भरता जा रहा था। रात्रि के भयंकर अंधकार में अभ्यस्त होने से पेटी उठा लाया, थोडा आगे बढा ही था कि जल तरंग के झपाटे ने पेटो सहित उन गृहस्थ को न जाने किस अनन्त में लेजाकर छिपा दिया । पेटी के लोभ ने प्राण-लोभ को निरस्त कर दिया ।
विजयनगर में एक जैन कदम्ब पानीसे बचने अपने मकान की छत पर चढ गए । पानी का प्रवाह मकान से थपेड़ा खाने लगा । गृहस्वामी ने सोचा यह पुराणा मकान इन थपेड़ों की मार में स्थिर रहे या न रहै । पास ही सटे हुए नये मकान की छत पर अपने कुटुम्ब को चले जाने की सलाह दी, और सबके सब अपने मकान की छत से उस छत पर चले गये । अन्त में गृहस्वामी भी इस छत से उस छत पर जाने के लिये अपना एक पैर उधर रखा दूसरा उठाया और उधर एकदम उस मकान ने जल समाधि ले ली । वह मकान मानो यही राह देख रहा था कि यह परिवार दूर हो जाय । साथ ही यह प्रत्यक्ष उदाहरण दिख रहा था कि पूर्व कृत सद्कर्म मनुष्यों के संरक्षक हैं । जगपुरा भी नदी के तट पर बसा हुआ है । गांव के लोग बडे हि श्रद्धालु होने से जल संकट देखकर तत्काल अपने गांव की चारों ओर ईश्वर के नाम की ओर धर्म के नाम को कार खींच दी । पानी का प्रथम तेज प्रवाह दूसरी ओर दो मील तक जाकर फिर लौटा। घात करने वाला प्रवाह न रह कर शान्त प्रवाह बन गया जिससे गांव के मकानों को गिरा नहीं सका। फिर गांव वालों ने मिल कर जल पूजा की जिससे गांव वालों का तनिक भी नुकसान नहीं हुआ "धर्म श्रध्धाः कथय किं न करोति पुंसोम्, उक्ति का यह तादृश उदाहरण था। सामने दिखने को मिला।
पूज्य श्री शंभूगढ पधारे तब उदयपुर से हिज हाईनेश महाराणा श्री भूपालसिंहजी साहेब स्वयं अपने राज्याधिकारियों सहित खारी नदी द्वारा त्रस्त गाँवों की परिस्थिति स्वयं समझने के लिये पधारे थे। उन्हें पूज्य श्री के शंभूगढ में बिराजने के समाचार मिले तो आपने मनुष्य को भेजकर दर्शन देने के लिये पूज्य श्री से
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